बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT-BD) ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के जघन्य अपराधों के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है। यह फैसला न सिर्फ बांग्लादेश में, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति, भारत-बांग्लादेश संबंधों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक बड़ी हलचल पैदा कर रहा है।
फैसले के मुख्य बिंदु
- सजा का संदर्भ
ICT-BD ने हसीना को तीन गिनती (चार्ज) में दोषी ठहराया है:
- छात्र-उपद्रव को भड़काना (incitement)
- हत्याओं का आदेश देना
- हिंसा और घोर दमन को रोकने में नाकामी।
- अनुपस्थिति में मुकदमा (In absentia)
हसीना दक्षिण एशियाई संकट के बीच भारत में निर्वासन में हैं।
अदालत ने उन्हें “फुगिटिव” घोषित किया है, और उनकी गैर-हाज़िरी में सजा सुनाई गई। - उनकी प्रतिक्रिया
- हसीना ने फैसले को “पक्षपाती और राजनीतिक रूप से प्रेरित” बताया है।
- उन्होंने कहा कि यह ट्रिब्यूनल “गैर-लोकतांत्रिक सरकार द्वारा गठित” है, और उन्हें अपनी ओर से न्याय का पर्याप्त मौका नहीं मिला।
- हसीना ने यह भी कहा है कि यदि उन्हें निष्पक्ष अदालत मिले, तो वे सबूतों का सामना करेंगी।
- बांग्लादेश की प्रतिक्रिया
- बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इस फैसले को “इतिहाससुखद” करार दिया है।
- साथ ही, उन्होंने भारत से हसीना की प्रत्यर्पण (extradition) की मांग की है, क्योंकि उनका यह दावा है कि भारत उन्हें शरण दे रहा है।
- भारत की प्रतिक्रिया
- भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह बांग्लादेश की जनता, शांति, लोकतंत्र व स्थिरता में “रूचि बनाये रखने” का पक्षधर है।
- दिल्ली ने तुरंत प्रत्यर्पण की मांग पर स्पष्ट सहमति नहीं दी है और संवाद जारी रखने की नीति अपना रही है।
- आलोचना और कानूनी विकल्प
- कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि वे मृत्युदंड के पक्ष में नहीं हैं, चाहे वह भारत का मामला हो या अन्य किसी देश का।
- विशेषज्ञों के मुताबिक हसीना अपील (appeal) कर सकती हैं — लेकिन निष्पादन (execution) की सम्भावना इस बात पर निर्भर करेगी कि अदालत उन्हें फिर से पकड़ पाती है या नहीं।
क्षेत्रीय और कूटनीतिक असर
- यह फैसला भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक बड़ी चुनौती है क्योंकि भारत पिछले साल से हसीना को यहां सुरक्षित रखने वाले देशों में से एक है।
- बांग्लादेश की वर्तमान सरकार, जो नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में है, इस फैसले को एक राजनीतिक विजय के रूप में देख रही है।
- अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और कई देश यह देखने के लिए तैयार हैं कि यह फैसला न्यायिक निष्पक्षता या राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा है।
आगे की चुनौतियाँ और खतरें
- प्रत्यर्पण की जटिलता
बांग्लादेश मांग कर रहा है कि भारत हसीना को सौंपे — लेकिन भारत के सामने यह डिप्लोमैटिक दुविधा होगी क्योंकि आरोपी यहां आसरा लिए हुए हैं। - आंतरिक अस्थिरता
फैसले के बाद बांग्लादेश में अशांति की संभावना है — हसीना समर्थकों की प्रतिक्रिया, विरोध प्रदर्शन या बंद की आशंका बनी हुई है। - न्यायिक प्रक्रिया और अपील
यदि हसीना अपील करती हैं, तो यह मामला उच्चतम स्तर तक पहुंच सकता है — और अंतरराष्ट्रीय ध्यान बने रहने की सम्भावना है। - मानवाधिकार का दबाव
मृत्युदंड वाले फैसलों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता विरोध भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए चुनौती हो सकता है, खासकर मानवाधिकार के दृष्टिकोण से।
निष्कर्ष
शेख हसीना को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा न केवल बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य को प्रभावित करती है, बल्कि भारत की विदेश नीति, क्षेत्रीय स्थिरता और मानवाधिकार पर इसकी गहरी छाप पड़ेगी। भारत की मंथर लेकिन सावधान प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि वह पूरे मामले में न केवल कूटनीतिक संतुलन बनाये रखने की कोशिश कर रही है, बल्कि यह भी देख रही है कि इस फैसले के दीर्घकालीन नतीजे क्या होंगे।
मुकदमे की अगली कड़ी, हसीना की अपील और संभावित प्रत्यर्पण, इन सब पर नज़र रखना ज़रूरी होगा — क्योंकि यह सिर्फ एक देश की न्याय व्यवस्था का मामला नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति और शांति का अहम मोड़ बन सकता है।


