दिल्ली में हुए रेड फोर्ट कार धमाके की जांच अब एक बड़े मकसद और नई गहराई में पहुंच चुकी है। The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक, एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी (Faridabad) और उसके संबद्ध स्थानों पर छापेमारी की है। यह कार्रवाई “फाइनेंशियल नेटवर्क” और “शेल कंपनियों” की तह तक जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
छापेमारी की पृष्ठभूमि और मकसद
- ED ने यूनिवर्सिटी से जुड़े लगभग 25 लोकेशन पर तलाशी अभियान चलाया है।
- एजेंसी का कहना है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी के ट्रस्ट और ग्रुप से जुड़े कम-से-कम 9 शेल कंपनियों (पर्ची कंपनियों) की पहचान की गई है।
- यह कदम दिल्ली धमाके (Red Fort Car Blast) के संदर्भ में उठाया गया है, क्योंकि जांच में यूनिवर्सिटी की भूमिका “लॉजिस्टिक हब” हो सकती है।
- ED की छापेमारी का उद्देश्य यह पक्का करना है कि कहीं कोर्स, ट्रस्ट या फिर अन्य वैधानिक संरचनाओं के माध्यम से गैरकानूनी धन (जैसे आतंकवाद के फंड) तो नहीं आ रहा था।
संदिग्ध वाहनों और यूनिवर्सिटी कैंपस की भूमिका
- पुलिस और जाँच एजेंसियों ने यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज परिसर में कई गाड़ियों की जांच की है। खासकर, मैरूति ब्रेज़ा की एक कार को संदेह की दृष्टि से स्कैन किया गया, जिसे यूनिवर्सिटी के परिसर में पार्क पाया गया था।
- सूत्रों के मुताबिक, यही वही वाहन था जिसे जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आगे की तफ्तीश के लिए ले लिया था।
- अन्य रिपोर्ट्स में कहा गया है कि विस्फोट में उपयोगी कार — एक Hyundai i20 — को भी यूनिवर्सिटी के परिसर में कुछ समय पहले पार्क किए जाने का सुराग मिला है।
- शोधकर्ताओं और फॉरेंसिक टीमों की नजर इन वाहनों पर इसलिए भी है क्योंकि हो सकता है कि उन्हें विस्फोटक सामग्री ले जाने, छिपाने या धमाके के लिए इस्तेमाल किया गया हो।
यूनिवर्सिटी की प्रतिक्रिया और उनका पक्ष
- अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने जांच एजेंसियों के साथ “पूरा सहयोग” करने का दावा किया है।
- उप-कुलपति डॉ. भपिंदर कौर आनंद ने कहा है कि जिन डॉक्टरों पर आरोप हैं, उनकी यूनिवर्सिटी से “सिर्फ़ नौकरी संबंधी” ही जुड़ाव है — विश्वविद्यालय का उनका आतंकवाद से कोई सीधा संबंध नहीं है।
- यूनिवर्सिटी ने साथ ही इस दुखद घटनाओं पर खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि वह “तर्कसंगत, निष्पक्ष और निष्कर्ष-परक जांच” की उम्मीद करती है।
कानूनी और सुरक्षा संकट: आगे की चुनौतियाँ
- शेल कंपनियों का नेटवर्क
- यदि ED यह साबित कर दे कि ये शेल कंपनियाँ आतंकवाद-फंडिंग या फर्जी लेन-देनों के लिए उपयोग हो रही थीं, तो यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा को भारी झटका लगेगा।
- ऐसे में ट्रस्ट के शीर्ष नेतृत्व — जैसे संस्थापक या ट्रस्टी — के खिलाफ गंभीर कानूनी कार्रवाई की मांग हो सकती है।
- गाड़ी-तफ्तीश का नतीजा
- उन गाड़ियों (जैसे ब्रेज़ा और i20) की पूरी हिस्ट्री, फॉरेंसिक रिपोर्ट और सीसीटीवी फुटेज असल सुराग दे सकती है कि धमाका किस तरह तैयार किया गया था।
- इससे यह भी स्पष्ट हो सकता है कि यूनिवर्सिटी परिसर का इस्तेमाल “स्टेजिंग ग्राउंड” के रूप में हुआ था।
- शैक्षणिक जवाबदेही
- यदि यह पाया जाता है कि शिक्षा संस्थान आतंकवादी मॉड्यूल का हिस्सा था, तो न केवल विश्वविद्यालय बल्कि पूरे निजी यूनिवर्सिटी मॉडल की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी पर सवाल उठेंगे।
- स्टूडेंट्स, फैकल्टी और स्टाफ की सुरक्षा की भी चिंता होगी — कि वे ऐसे संस्थानों में पढ़ना या काम करना जारी रखें, जहां आतंकवाद-जांच का मुद्दा उठता हो।
- नियम-नीति सुधार
- यह मामला शिक्षा और सुरक्षा नीतियों के बीच नए संतुलन की मांग कर सकता है — जैसे कि शैक्षणिक संस्थानों की वित्तीय पारदर्शिता, आतंकवादी नेटवर्क-फंडिंग की रोकथाम, और देशव्यापी निगरानी मैकेनिज्म।
- सरकारों को यह तय करना होगा कि विश्वविद्यालयों की जांच किस हद तक स्वायत्त हो — ताकि उच्च शिक्षा और सुरक्षा दोनों तरफ संतुलन बना रहे।
निष्कर्ष
ED की छापेमारी अल-फलाह यूनिवर्सिटी में सिर्फ एक वित्तीय जांच नहीं है — यह उसी बदनाम आतंकवादी साजिश की गंभीरता को दर्शाती है, जिसका केंद्र यह शिक्षण-संस्थान बन गया है। दिल्ली के लाल किले (Red Fort) धमाके की जांच में यह कदम एक बड़ा मोड़ है क्योंकि यह सिर्फ डॉक्टरों की भूमिका तक सीमित नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र की तह में जाने की कोशिश है जिसमें विश्वविद्यालय, ट्रस्ट और गाड़ियाँ शामिल हो सकती हैं।
यदि ED अपनी जाँच पूरी तरह निष्पक्ष और गहराई से करेगी, तो इस मलबे में छिपे राज़—बाहर आएंगे, उत्तरदायित्व तय होगा और भविष्य के लिए एक सबक बनेगा कि शिक्षा संस्थानों में सुरक्षा और जवाबदेही कितनी अहम है। विश्वविद्यालय के लिए यह समय न सिर्फ सफ़ाई देने का है, बल्कि यह सिद्ध करने का भी कि उसमें काले धब्बों के पीछे सिर्फ कुछ अपराधी तत्व हैं, न कि पूरा तंत्र भ्रष्ट और आतंक-जाल में लिप्त है।

