26 नवंबर 2025, भारत के संविधान दिवस पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश के नागरिकों को एक खुला पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने कहा कि नागरिकों के संवैधानिक कर्तव्य (constitutional duties) केवल एक कागज़ी धारणा नहीं, बल्कि आधुनिक भारत में मजबूत लोकतंत्र की नींव हैं। उन्होंने लोगों से अपने अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारियों को समझने और निभाने की अपील की।
उन्होंने यह भी कहा कि मतदान का अधिकार (vote) हर नागरिक का ज़रूरी कर्तव्य है — इसे भूलना नहीं चाहिए। प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि 26 नवंबर को—हर साल—स्कूलों और कॉलेजों में उन युवाओं को सम्मानित किया जाए जो पहली बार वोट देने आए हैं। इससे युवा पीढ़ी में संवैधानिक जागरुकता और लोकतंत्र में भागीदारी की भावना बढ़ेगी।
पत्र में मोदी की मुख्य बात-बातें
1. कर्तव्यों की अहमियत — अधिकारों से पहले
- मोदी ने याद दिलाया कि हमारा संविधान सिर्फ अधिकार नहीं देता, बल्कि हमें नागरिक रूप में दायित्व भी सौंपता है — जैसे कि संविधान, संस्थाओं, राष्ट्र-ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
- उन्होंने महात्मा गांधी का हवाला दिया, जिन्होंने कहा था कि “अधिकार, कर्तव्यों के पालन से आते हैं।” मोदी ने कहा कि अगर हम अपने कर्तव्य निभाएँगे, तभी समाज और देश प्रगति करेगा।
2. लोकतंत्र का आधार — वोटिंग और नागरिक भागीदारी
- पत्र में उन्होंने कहा कि लोकतंत्र तब ही मजबूत रहेगा जब हर नागरिक अपनी वोटिंग की ज़िम्मेदारी निभाएगा। उन्होंने विशेष रूप से नए-नए 18 साल पूरे कर चुके युवाओं को पहला वोट देने का आग्रह किया।
- उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूलों और कॉलेजों में हर संविधान दिवस पर पहली बार वोट देने वाले युवाओं को सम्मानित किया जाए — ताकि उन्हें नागरिकता और लोकतंत्र की अहमियत समझ में आए।
3. संविधान निर्माताओं का सम्मान और उनके सपनों को आगे ले जाना
- मोदी ने संविधान के निर्माताओं — जैसे B. R. Ambedkar — को श्रद्धांजलि दी, और कहा कि उनकी दूरदर्शिता आज भी भारत के विकास को दिशा देती है।
- उन्होंने कहा कि संविधान ने हमें सामाजिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता, धार्मिक-सहमति, मानव गरिमा जैसे मूल्य दिये हैं — और अब हम पर ज़िम्मेदारी है कि उन्हें जीवन में उतारें।
4. “विकसित भारत” का लक्ष्य — कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों के सहयोग से
- मोदी ने यह स्पष्ट किया कि आज के फैसले अगले कई पीढ़ियों का भविष्य तय करेंगे — इसलिए हर नागरिक को अपने दायित्वों को ध्यान से निभाना चाहिए।
- उन्होंने कहा कि संवैधानिक कर्तव्य निभाने से देश की आर्थिक-सामाजिक प्रगति संभव है। इस प्रकार, यह सिर्फ राजनीतिक या सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि देश निर्माण का मूल आधार है।
क्यों है यह पत्र और संदेश अहम — आज की चुनौतियों में
आज के समय में जहाँ भारत तेज़ी से बदल रहा है — आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी और राजनीतिक रूप से — संविधान और उसकी संवेदनशीलता को समझना ज़रूरी हो गया है।
- डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया और फेक खबरों का दौर — ऐसे में नागरिकों को संविधान और उसकी आत्मा (rights + duties) की समझ होनी चाहिए, ताकि वे झूठ या विभाजनकारी बातों का शिकार न हों।
- युवा-पीढ़ी और पहली बार वोटर्स — देश की आबादी का बड़ा हिस्सा युवा है। उनको अगर संवैधानिक जागरूकता मिले, तो लोकतंत्र मजबूत और जिम्मेदार बनेगा।
- संघीयता, बहुलता और सामाजिक विविधता — भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति, जाति, क्षेत्र की विविधता है। संविधान दिवस व मोदी का यह संदेश हमें याद दिलाता है कि एकता-भाईचारे, समानता और सहिष्णुता ही राष्ट्रीय धरोहर है।
- नागरिक जिम्मेदारी बनाम केवल मांगना — अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने नागरिक दायित्वों को निभाना — जैसे मतदान करना, समाज में योगदान देना, कानून और संस्थाओं का सम्मान करना — ये बातें ही लोकतंत्र को जीवंत बनाती हैं।
आलोचना, सवाल और चुनौतियाँ — जो विचार मांगते हैं
- कुछ लोगों का कहना हो सकता है कि सिर्फ “कर्तव्य निभाने” की बात करके सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार, लोकतांत्रिक ढांचे की कमजोरियों आदि चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता — उन्हें संस्थागत सुधार भी चाहिए।
- यह सवाल उठता है कि क्या सिर्फ वोट करना ही पर्याप्त है, या समाज में सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य तक समान पहुंच सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है — जहाँ संविधान के मूल उद्देश्य का असली अर्थ है।
- कर्तव्यों के साथ-साथ, यह भी ज़रूरी है कि नागरिकों को उनके अधिकारों की पूरी जानकारी हो — तभी वे संवैधानिक सुरक्षा, स्वतंत्रता और न्याय की मांग कर पाएँगे।
- युवा वर्ग को सिर्फ वोटर बनाना ही काफी नहीं — उन्हें संवैधानिक मूल्यों, नागरिक ज़िम्मेदारी और सामाजिक न्याय की समझ देना होगा।
संविधान दिवस का महत्व — सिर्फ एक दिन नहीं, रोज़ की श्रद्धा
Constitution of India को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था; 26 जनवरी 1950 से यह लागू हुआ, और देश एक सार्वभौमिक लोकतंत्र बना।
हालाँकि, 2015 से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है — ताकि हम संविधान के आदर्शों, अधिकारों और कर्तव्यों को याद रखें।
प्रधानमंत्री मोदी का पत्र इस विचार को मजबूत करता है कि संविधान केवल दस्तावेज नहीं — बल्कि हमारी सामूहिक जिम्मेदारी, हमारी आस्था और हमारे राष्ट्र-स्वाभिमान का प्रतीक है।
हर नागरिक को चाहिए कि वह संविधान की शपथ को हर रोज़— अपने व्यवहार, अपने कर्तव्यों और अपने निर्णयों में— जिए।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 26 नवम्बर 2025 का पत्र एक मार्गदर्शक दस्तावेज़ है — सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में उतारने के लिए।
समय बदल रहा है, परिस्थितियाँ बदल रही हैं, लेकिन संविधान और उसके आदर्श — मानव गरिमा, समानता, स्वतंत्रता, न्याय — वे स्थायी आधार हैं, जो भारत को एक विकसित, समृद्ध और संवेदनशील राष्ट्र बना सकते हैं।
अगर हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने दायित्वों को भी समझें, निभाएँ — सिर्फ वोटिंग तक सीमित न रहें, बल्कि अपने सामाजिक, आर्थिक और संवैधानिक कर्तव्यों को ज़िम्मेदारी से लें — तभी हम अपने संविधान को जिंदा रख सकेंगे।
यह संविधान दिवस हमें सिर्फ याद दिलाता है — कि देश केवल सरकार से नहीं, हम नागरिकों से बनता है।

