Breaking News संसद में सत्र से पहले सियासी महौल गरम — PM मोदी का “ड्रामा नहीं, डिलीवरी” बयान, राहुल-प्रियंका की तीखी प्रतिक्रिया

नई दिल्ली — 1 दिसंबर 2025: जैसे ही संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ, राजनीतिक गलियारों में माहौल गरमा गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया से बातचीत में विपक्ष को चेतावनी दी कि संसद में “ड्रामा” नहीं चलना चाहिए — यहाँ “डिलीवरी” होनी चाहिए। उनका इशारा था कि विरोधी दलों को हंगामा बंद करके कार्य-व्यवस्था को कामकाजी बनाना चाहिए। 


इस बयान का सीधा असर हुआ विपक्षी खेमे में; कांग्रेस ने जवाबी हमला किया। विशेष रूप से प्रियंका गांधी ने कहा कि संसद जनादेश, जनहित व समाज के महत्वपूर्ण मसलों की सुनवाई का मंच है — महंगाई, मतदान सूचियों (SIR), वायु प्रदूषण जैसे विषयों पर चर्चा करना “ड्रामा” नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल कर्तव्य हैं। 


जब इस सब के बीच राहुल गांधी से मीडिया ने पूछा कि प्रधानमंत्री के तंज पर उनकी क्या प्रतिक्रिया है — तो उन्होंने कह दिया कि इस पर उनका “नो कमेंट” है। 


इस पूरे घटनाक्रम ने संसद सत्र की शुरुआत से ही एक तीव्र राजनीतिक टकराव की चेतावनी दे दी है — जहाँ मुद्दों, मर्यादा, शिष्टाचार व लोक-हित की बहस का सवाल खड़ा हो गया है।



क्या कही प्रधानमंत्री मोदी ने — “Delivery, not drama”

शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया से बातचीत में कहा:


  • “सदन हंगामे (प्रदर्शन) के लिए नहीं है; अगर कोई ड्रामा करना चाहता है तो उसके लिए कई जगहें हैं — लेकिन यहाँ ‘डिलीवरी’ होनी चाहिए।”  
  • उन्होंने यह भी कहा कि हाल में हुए बिहार चुनाव में जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है; विपक्ष को अपने मतभेदों व हार-हमले की भावना से बाहर आ कर देश-निर्माण पर फोकस करना चाहिए।  
  • मोदी ने विकल्प शुरू करते हुए यह सुझाव दिया कि पहले-बार संसद पहुंचे नए सांसदों को मौके मिलना चाहिए — न कि सदन भगदड़, नारेबाज़ी या लंबी बहसों में पटा रहे।  


उनका यह कहना था कि लोकतंत्र में प्रदर्शन, नारेबाज़ी या बवाल नहीं, नीतियाँ बनी चाहिए — जिसके लिए संसद एक “निर्माणात्मक प्लेटफॉर्म” हो। 



प्रियंका गांधी ने किया पलटवार — कहा: मुद्दों पर बोलना हक है


प्रधानमंत्री के इस बयान के तुरंत बाद, कांग्रेस की युवा सांसद प्रियंका गांधी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा:

“महंगाई, SIR, प्रदूषण — ये ऐसे मुद्दे हैं जो जनता की ज़िंदगी से जुड़े हैं। अगर इन पर चर्चा करना ड्रामा है, तो लोकतंत्र पर शक करना होगा। संसद उसी के लिए है।” 


उनका कहना था कि संसद जनता की आवाज़ होती है — जहाँ लोग अपने दर्द, अपनी आशंकाएँ, अपनी मांगें रखते हैं। उन मुद्दों पर चुप्पी साध देना, या उन्हें हल्के में लेना — यही असली “ड्रामा” है। 


प्रियंका ने सरकार पर आरोप लगाया कि वो महत्वपूर्ण विषयों को शांतिपूर्ण बहस के बजाए दबाना चाहती है। उन्होंने कहा कि किसी से डिबेट में असहमत होना लोकतांत्रिक है — लेकिन बात बंद करना लोकतंत्र की हत्या है। 


कांग्रेस पार्टी ने तय किया है कि वे संसद में नए सत्र में — Special Intensive Revision (SIR) — मतदाता सूची पुनरीक्षण, राष्ट्रीय वायु-प्रदूषण, नागरिक आज़ादी, हक़बाज़ी, etc. जैसे बड़े मामलों पर जोर देंगी। 



राहुल गांधी ने क्यों नहीं दिया सीधा जवाब — “नो कमेंट”

जब मीडिया ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से पूछा कि प्रधानमंत्री के तंज पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी — उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि “मैं इस पर अभी कुछ नहीं कहना चाहता — नो कमेंट।” 


विश्लेषकों का कहना है कि राहुल के लिए यह रणनीति हो सकती है — क्योंकि अभी सत्र शुरू हुआ है और अगर वे तुरंत हमलावर मुद्रा اختیار कर लें, तो सरकार बहस की जगह को शक्ति संघर्ष और संवाद से कटाव बना सकती है।


दूसरी ओर, कांग्रेस अंदरूनी तौर पर प्रियंका गांधी के बयान और अन्य नेताओं की सक्रियता को सामने रखने का फैसला कर चुकी है — जिससे विपक्ष की आवाज़ जनता तक पहुँचे।




संसद में सत्र — क्या है एजेंडा, और क्यों है अहम


इस शीतकालीन सत्र (2025) की शुरुआत में सरकार ने 13–14 नए विधेयकों (Bills) को पेश करने का संकल्प लिया है। 


विपक्ष के लिए सबसे अहम मुद्दा — SIR (मतदाता सूची पुनरीक्षण), देशभर में वायु-प्रदूषण (Delhi-NCR समेत), बेरोजगारी, सामाजिक असमानता, नागरिक अधिकार, इत्यादि — होंगे। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने पहले ही कहा है कि वे इन मसलों को सदन में प्रमुखता से उठाेंगे। 


इस सत्र में सरकार का इरादा है कि संसद को केवल बहस व बयानबाज़ी का मंच न बनाकर, योजनाओं, नीतियों व कामकाज का केंद्र बनाए — मगर विपक्ष इसे “निष्क्रियता” व “लोकतांत्रिक बहस से बचने” की कोशिश मान रहा है।


इस पृष्ठभूमि में — विपक्ष व सरकार के बीच टकराव, दोनों ओर से रणनीतिक बयानबाज़ी, मीडिया की भूमिका, जनता की उम्मीदें — सब कुछ देखना अब दिलचस्प होगा।




इस टकराव का मतलब क्या है — लोकतंत्र, जनता व राजनीति

विपक्ष का सशक्त तरीका: आवाज़, बहस और दबाव


-जब मुद्दों — जैसे मतदान सूची, प्रदूषण, सामाजिक असमानता — को संसद जैसे मंच पर उठाया जाए, तो लोकतंत्र का सार बचेगा। जनता के सवालों को हल्के में नहीं, गंभीरता से लिया जाएगा।


  • यह सरकार को जवाबदेह बनाए रखता है; नीतियों, बिलों, कानूनों के असर को जनता व विपक्ष दोनों देखेंगे।
  • बातचीत, बहस और लोकतांत्रिक प्रक्रिया — ये लोकतंत्र की नींव हैं; अगर इन्हें दबाया गया, तो लोकतंत्र कमजोर होगा।



सरकार का दबाव: स्थिरता, कामकाज और “डिलीवरी”

  • तेजी से कानून पास करना, विकास-कार्य, योजनाओं को आगे बढ़ाना — इन पर सरकार जोर देना चाहती है।
  • हंगामा, प्रदर्शन या अराजकता — जो संसद के कामकाज को रोक सकते हैं — उनसे बचने की कोशिश हो सकती है।
  • नई तरह की राजनीतिक संस्कृति — जहां बयानबाज़ी से अधिक, काम और नतीजे मायने रखें — शायद यही मोदी सरकार की दृष्टि हो।




बीच का पथ: मर्यादा, संवाद और जिम्मेदारी


चल रही बहस यह तय करेगी कि लोकतंत्र में कितना स्थान संवाद, सवाल, आलोचना व चर्चा का बचा है।


अगर संसद सिर्फ विधेयक पास करने का स्थान बन जाए — बिना बहस, बिना जवाबदेही — तो लोकतंत्र की आत्मा मिट सकती है।


लेकिन अगर विपक्ष व सरकार दोनों — मर्यादा, शिष्टाचार और कामकाजी माहौल बनाए रखें — तो लोकतंत्र मजबूत रहेगा।


वोटर, आम नागरिक, युवा — सभी की निगाहें अब 19 दिसंबर 2025 तक चलने वाले इस शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं।


निष्कर्ष

2025 का शीतकालीन सत्र — अब सिर्फ एक आम सत्र नहीं, बल्कि यह दांव-पेंच, बयानबाज़ी, राजनीतिक रणनीति और लोकतांत्रिक भविष्य का टेस्ट बन चुका है।


प्रधानमंत्री मोदी की “डिलीवरी, न ड्रामा” की अपील, प्रियंका गांधी का पलटवार, राहुल गांधी की चुप्पी — इन तीनों क्षणों ने दिखाया कि आगे जो होगा, वह सिर्फ विधेयक नहीं — लोकतंत्र, जन-अभिव्यक्ति, जवाबदेही एवं नीति-निर्माण का भविष्य होगा।


अगर संसद, नेता, विपक्ष — यह समझ लें कि जनता की उम्मीदों और सवालों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता — तो यह सत्र लोकतंत्र के लिए नया अध्याय बन सकता है।


वरना, जनता का भरोसा डगमगा सकता है — और राजनीति सिर्फ नुमाइश तक सीमित रह जाएगी।