27 नवंबर 2025 को ओडिशा एक ऐतिहासिक पल के लिए तैयार है। इस दिन, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू — जो कि देश की प्रथम Конституचनात्मक महिला, आदिवासी और वर्तमान राष्ट्रपति हैं — ओडिशा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सदन को संबोधित करेंगी। यह पहली बार होगा कि एक पदस्थ राष्ट्रपति राज्य विधानसभा को सीधे संबोधित करेंगे।
उनका यह ऐतिहासिक कदम न सिर्फ ओडिशा के लिए गर्व का है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक यादगार घटना बन चुकी है — क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।
मुर्मू का ओडिशा से विशेष नाता
- द्रौपदी मुर्मू, इससे पहले दो बार — 2000 और 2004 में — विधायक चुनी गई थीं (रायरंगपुर निर्वाचन क्षेत्र, मई → मयूरभंज) और तब उन्होंने राज्य में वाणिज्य, परिवहन, मत्स्य पालन-पशु संसाधन जैसे विभागों में मंत्री के रूप में काम किया।
- कहा जाता है कि जिस कक्ष (कक्ष संख्या 11) में उन्होंने मंत्री के रूप में काम किया था, उसे शाब्दिक रूप से संवर्धित किया गया है। राष्ट्रपति के ऐतिहासिक दौरे के उपलक्ष्य में उस कक्ष को विशेष रूप से सजाया गया है, ताकि उनका विधानसभा से जुड़ा अतीत फिर से उजागर हो सके।
इस प्रकार, राष्ट्रपति का यह दौरा और संबोधन — सिर्फ औपचारिक नहीं — बल्कि उनके राजनीतिक-शैक्षिक जड़ और अतीत की यादों का पुनरावलोकन भी है।
तैयारी — विधानसभा से शान और शहर तक सम्पूर्ण सजावट
- ओडिशा विधानसभा सचिवालय और संबंधित विभागों ने विस्तृत तैयारी शुरू कर दी है। पूरे विधान भवन, कक्ष, भवन परिसर को सफाई, मरम्मत, सजावट और सौंदर्यीकरण का कार्य किया गया है।
- शीतकालीन सत्र 27 नवंबर से शुरू हो रहा है, और पहले दिन के रूप में राष्ट्रपति का संबोधन तय है। इस सत्र में लगभग 29 बैठकें होने की संभावना है, जिसमें प्रस्तावित बजट, विभागीय काम, विधायी प्रक्रिया आदि शामिल होंगे।
- सुरक्षा व्यवस्था को सशक्त किया गया है। राज्य प्रशासन, पुलिस, विधानसभा सचिवालय तथा राज्य राजभवन — सभी स्तरों पर सतर्कता रखी गई है, क्योंकि यह एक संवेदनशील व ऐतिहासिक पल है।
राजनीतिक-संवैधानिक महत्व — राष्ट्रपति, राज्यों और लोकतंत्र का नया अध्याय
संवैधानिक प्रथा में एक नया बदलाव
देश में राष्ट्रपति का आमतौर पर संसद या अन्य राष्ट्रीय फोरमों में संबोधन होता आता है। मगर, किसी राज्य विधानसभा को सीधे संबोधित करना — वह भी अपना ही राज्य — एक गहरी संवैधानिक, ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक प्रथा है।
ओडिशा का यह कदम इस बात को दर्शाता है कि संवैधानिक पदों, राजनैतिक इतिहास, संवैधानिक लोकतंत्र — इन सबका तालमेल अब और व्यापक होता जा रहा है।
राज्य और केंद्र के बीच संवाद — एक नया पहलु
राष्ट्रपति एक राष्ट्रीय समन्वयकर्ता होते हैं, पर जब वे अपने राज्य विधानसभा से जुड़ी हों, और उन सदस्यों को संबोधित करें, तो यह केंद्र–राज्य संबंधों में एक नई पहल को दर्शाता है।
इससे संभव है कि राज्य के लिए वित्तीय, विकासात्मक, सामाजिक व सांस्कृतिक लक्ष्यों में नए प्रस्ताव, सुझाव सामने आएँ — जो विधानसभा में चर्चा के लिए प्रासंगिक होंगे।
प्रतीकात्मक ताकत — एक आदिवासी-महिला राष्ट्रपति का आदर
द्रौपदी मुर्मू अपने आप में ही इतिहास बन चुकी हैं: आदिवासी पृष्ठभूमि से आतीं, उनके लिए राजनीति, शिक्षा, जागरूकता, प्रतिनिधित्व — सब का मार्ग आसान नहीं था। उन्होंने राज्य स्तरीय राजनीति से लेकर भारत की सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय किया।
उनका यह विधानसभा संबोधन — खासकर उस राज्य में जहाँ उन्होंने शुरुआत की थी — आदिवासी, महिला, लोकतंत्र व प्रतिनिधित्व — सबका सम्मान है। यह उन सब लोगों के लिए प्रेरणा है, जो सामाजिक व राजनीतिक प्रतिबद्धता की चाह रखते हैं।
क्या होगा संबोधन में — संभावित विषय और दिशा
राष्ट्रपति के विधानसभा संबोधन से आमतौर पर यह उम्मीदें की जाती हैं:
- राज्यों और केंद्र के बीच सहकारिता, न्याय, समान विकास की बात होगी।
- सामाजिक न्याय, आदिवासी अधिकार, शिक्षा-स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पर्यावरण, संवैधानिक मूल्यों पर जोर हो सकता है।
- संवैधानिक मर्यादा, संवेदना, राष्ट्रीय एकता, भौगोलिक–भाषाई–सांस्कृतिक विविधता में सहिष्णुता जैसे विषय प्रमुख रहेंगे।
- राज्य की पिछली सरकारों, वर्तमान चुनौतियों और भविष्य के लक्ष्यों पर चर्चा — यह सभी मोदी के अनुभव और राष्ट्रीय दृष्टिकोण को देखते हुए संभव है।
विश्लेषकों का कहना है कि मुर्मू का यह संबोधन सिर्फ औपचारिक नहीं होगा — बल्कि एक दिशा-निर्देश हो सकता है कि आगे राज्य व केंद्र मिलकर कैसे काम करें।
लोगों की उम्मीदें और संवेदनाएँ
- ओडिशा के मतदाताओं, आदिवासी-जनजातीय समुदायों, पिछड़े इलाकों के लोगों में — राष्ट्रपति के इस कदम को उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। वे चाहते हैं कि उनके अधिकार, विकास, पहचान को संवाहन मिले।
- युवा वर्ग, महिलाएं, छात्र-छात्राएं — वे इस पल को एक संदेश के रूप में ले रहे हैं: “अगर मेहनत, अस्मिता, विश्वास हो — तो ऊँचाई पा सकते हैं।” यह सामाजिक बराबरी और लोकतंत्र का जशन है।
- राजनीतिक दलों, विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों के लिए यह अवसर है कि वे नए दृष्टिकोण, विकास कार्यों, सामाजिक कल्याण नीतियों पर ध्यान दें।
चुनौतियाँ और संवेदनशील पहलू
लेकिन इस ऐतिहासिक घटना के साथ कुछ चुनौतियाँ व सावधानियाँ भी जुड़ी हैं:
- उम्मीदों और यथार्थ के बीच संतुलन — सिर्फ प्रतीकात्मक संबोधन से विकास नहीं आता। यदि युवाओं, आदिवासियों, पिछड़े इलाकों को सशक्त बनने का मौका नहीं दिया गया — तो यह केवल प्रदर्शन बन कर रह जाएगा।
- केंद्रीय व राज्य सरकारों के बीच ताल-मेल — अगर नीतिगत और संवैधानिक अंतर पैदा हो गए — तो यह कदम विवादास्पद हो सकता है।
- सांस्कृतिक व सामाजिक विविधता — ओडिशा एक विविध राज्य है। किसी भी निर्णय में, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक असंतुलन न हो, यह ध्यान रखना होगा।
- लोकतांत्रिक मर्यादा व संवैधानिक सीमाएं — राष्ट्रपति का विधानसभा में आना एवं जुलाई-कार्यवाही को संबोधित करना संवैधानिक रूप से विशिष्ट है; इसे संवैधानिक मर्यादा की दृष्टि से देखना होगा।
आज की तारीख़ में इसका महत्व — और आने वाले दिनों में क्या देखना है
27 नवंबर 2025 — यह दिन सिर्फ एक तारीख़ नहीं, बल्कि ओडिशा, भारत और उनके लोकतंत्र के लिए नया अध्याय है।
- इससे पहले राष्ट्रपति केवल उच्च सदनों या राष्ट्रीय फोरमों में भाषण देते थे; पर अब यह स्थापित हो गया कि किसी राज्य विधानसभा को सीधे संबोधित करना भी लोकतांत्रिक प्रथा हो सकती है।
- भविष्य में, अन्य राज्यों में ऐसे प्रयास हो सकते हैं — जहाँ राष्ट्रपति, राज्य की सामाजिक-राजनीतिक जड़ से जुड़े नेता रहे हों, और वे विधानसभा के लिए प्रेरणा-स्रोत बन सकें।
- यह कदम न सिर्फ संवैधानिक प्रथा है, बल्कि सामाजिक समानता, प्रतिनिधित्व, आदिवासी अधिकार, महिला-शक्ति और लोकतंत्र की ऊँचाई — इन सबका प्रतीक हो सकता है।
निष्कर्ष — एक बहुआयामी ऐतिहासिक पल, जिसे रोकना नहीं बल्कि आगे बढ़ाना है
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का ओडिशा विधानसभा को संबोधित करना सिर्फ एक औपचारिक दायित्व नहीं है — यह भारत के लोकतंत्र, उसकी विविधता, उसकी संवैधानिक गहराई, उसकी उस सच्ची पहचान का उत्सव है, जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं।
इस ऐतिहासिक पलों से हमें सिर्फ गौरव नहीं मिलता — हमारी जिम्मेदारी बढ़ती है। हमें यह देखना है कि यह संबोधन कैसे लागू होता है — शिक्षा, विकास, न्याय, समानता, प्रतिनिधित्व जैसे सार्थक लक्ष्यों में।
अगर हम सही दृष्टिकोण, सही नीतियाँ, सच्ची प्रतिबद्धता और संवेदनशीलता रखें — तो यह सिर्फ एक दिन का भाषण नहीं रहेगा। यह उस भारत का आधार बनेगा, जिसे हम सब चाहते हैं।


