Breaking News एथिया में ज्वालामुखी, दिल्ली-एनसीआर में राख-बादल: Hayli Gubbi विस्फोट ने बढ़ाई मुश्किलें

23 नवम्बर 2025 को एथियोपिया के अफर क्षेत्र में स्थित Hayli Gubbi ज्वालामुखी फटा — एक ऐसा विस्फोट जो लगभग 12,000 सालों से शांत था। इस विस्फोट ने 14 किलोमीटर से अधिक ऊँचाई तक राख और धुएँ का विशाल बादल छोड़ा। 


धीरे-धीरे, तेज हवाओं ने इस राख-बादल को अरब सागर — रेड सी से होते हुए पश्चिमोत्तर भारत की ओर मोड़ा। 24 नवम्बर की देर रात तक यह गुबार गुजरात, राजस्थान, फिर हरियाणा, पंजाब और अंततः दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र तक पहुँच गया। 


इस अप्रत्याशित घटना ने न केवल वायु यात्रा को प्रभावित किया, बल्कि दिल्ली जैसे पहले से प्रदूषण-ग्रस्त शहर में लोगों की सेहत और जीवनशैली को भी एक नई चिंता में डाला।


राख-बादल और उड़ानों पर असर — विमानन व्यवस्था में हड़कम्प


उड़ानों में रद्दीकरण और मार्ग परिवर्तन


  • विस्फोट के बाद राख-बादल और उससे जुड़े गैसीय मिश्रण (sulphur dioxide सहित) के चलते, भारत में विमानन नियामक DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) ने एडवाइजरी जारी की। सभी एयरलाइनों को निर्देश मिला कि वे राख प्रभावित क्षेत्रों और उनकी ऊँचाई वाले मार्गों से बचें, तथा उड़ानों की योजना इस अनुरूप बदलें।  
  • इस कारण कई अंतरराष्ट्रीय और देशीय उड़ानें रद्द या डायवर्ट हुईं। हवाई मार्गों की सुरक्षा को देखते हुए फ़्लाइट शेड्यूल में बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिले।  
  • उदाहरण के लिए, कुछ एयरलाइनों ने साफ कहा कि वे “पूरी सावधानी” बरत रही हैं, चाहे फिलहाल कोई बड़ा असर नहीं हुआ हो।  


राख-बादल के कारण विमान इंजन और उपकरणों को जोखिम


विशेष रूप से, ज्वालामुखीय राख सिर्फ धूल-कण नहीं होती — इसमें सूक्ष्म कांच, क्रिस्टलीय सिलिका, चट्टानी कण और सल्फर यौगिक शामिल होते हैं। ये सीधे विमान इंजन, पिटोट ट्यूब, एयर-फिल्टर, नेविगेशन सिस्टम आदि को प्रभावित कर सकते हैं — जिससे उड़ान सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है। 


इसलिए, फिलहाल सरफेस (ज़मीनी स्तर) पर राहत हो सकती है, लेकिन आकाश में उड़ान भरने वाले विमानों के लिए यह बेहद गंभीर स्थिति थी।



दिल्ली-एनसीआर में प्रभाव: वायु गुणवत्ता, स्वास्थ्य व सतर्कता

राख-बादल का असर — कितना?


  • विशेषज्ञों का कहना है कि राख-बादल अधिकतर ऊँचाई (25,000–45,000 फीट) पर था — इसलिए ज़मीनी हवा, जहाँ लोग सांस लेते हैं, उस स्तर पर उसका सीधा असर कम होने की संभावना है।  
  • कुछ विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि हालांकि AQI में तुरन्त वृद्धि नहीं देखी गई, लेकिन सल्फर-डाइऑक्साइड और सूक्ष्म कणों (volcanic ash) से स्वास्थ्य जोखिम बने हुए हैं — खासकर ऐसे लोगों के लिए जिनकी पहले से फेफड़े, हृदय या श्वसन संबंधी परेशानी है।  
  • स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आगाह किया कि राख में मौजूद कांच और सिलिका फेफड़ों में गहराई तक जा सकती है, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सांस फूलना, गले में जलन, आंखों-नाक में जलन, सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।  

सावधानी और सुझाव


  • जरूरत हो तो घरों की खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद रखें, हवा फिल्टर या एयर प्यूरीफायर चलाएँ।  
  • यदि बाहर जाना अनिवार्य हो, तो N95 या उससे बेहतर मास्क पहनें — साधारण कपड़े का मास्क राख एवं ज्वालामुखीय कणों से रक्षा नहीं करता।  
  • बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं और श्वसन संक्रमण वाले लोगों को बाहर निकलने या कठिन शारीरिक गतिविधि से बचना चाहिए।  
  • घरेलू सफाई करते समय सूखी झाड़ू की जगह गीली सफाई करें — नहीं तो राख उड़ सकती है।  



भू-विज्ञान और पर्यावरणीय दायरा: इतनी दूर तक कैसे पहुँचे राख-बादल?


Hayli Gubbi विस्फोट — एक ऐतिहासिक घटना

  • Hayli Gubbi ज्वालामुखी लंबे समय (लगभग 12,000 साल) से शांत था। 23 नवम्बर 2025 को उसने एक शक्तिशाली विस्फोट किया, जिससे राख और गैसीय उग्र पदार्थ वायुमंडल में 14 किलोमीटर ऊँचाई तक फेंक दिए गए।  
  • यह क्षेत्र पृथ्वी की टेकटोनिक प्लेटों के मध्य स्थित है — اصطकन के कारण समय-समय पर ज्वालामुखीय गतिविधियाँ होती रहती हैं। लेकिन इतनी भव्य राख तत्व बाहर आना बेहद दुर्लभ था।  


राख-बादल का 4,000+ किलोमीटर का सफर


  • विस्फोट के बाद, तेज हवाओं ने राख-बादल को अरब सागर के ऊपर से, रेड सी पार करते हुए पश्चिमी एशिया, फिर पाकिस्तान, और अंततः भारत के पश्चिमोत्तर भाग तक पहुँचाया।  
  • 24 नवम्बर रात करीब 11 बजे राख-बादल दिल्ली-एनसीआर के आसमान में था। हालांकि यह ऊँचाई (लगभग 25,000-45,000 फीट) पर था, लेकिन इसका प्रभाव अविश्वसनीय था — यह दिखाता है कि भूगर्भीय घटनाएँ हजारों किमी दूर के क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकती हैं।  


वैश्विक कड़ी: जलवायु, वायु-रफ्तार और मानव संवेदनशीलता


यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि पृथ्वी की भू-वैज्ञानिक गतिविधियाँ, वायुमंडलीय हवा की दिशा, और मानव निवास — तीनों बेहद जटिल रूप से जुड़े हुए हैं। एक ज्वालामुखी का विस्फोट किसी देश में हो — तो हवा, धूप, मौसम, और मानव स्वास्थ्य के मामले कैसे दायरे बदल सकते हैं, यह Hayli Gubbi ने स्पष्ट कर दिया।


सामाजिक, प्रशासनिक व पर्यावरण-नीति पर असर

विमानन और यात्रा का संकट

विस्फोट और राख-बादल के कारण एयरलाइंस को बड़े पैमाने पर उड़ान रद्द करनी पड़ी या मार्ग बदलने पड़े।


  • DGCA ने एडवाइजरी जारी की — जिससे सभी विमान कंपनियाँ ash-affected airspace से बचने को बाध्य हुईं।  
  • यात्रियों को सतर्क किया गया कि वे अपने फ्लाइट स्टेटस की जाँच करें, देरी या रद्दीकरण की संभावना पर ध्यान दें।  
  • यह दिखाता है कि आधुनिक विमानन व्यवस्था, भले कितनी विकसित हो, प्राकृतिक घटनाओं के आगे कितनी असहाय हो सकती है।


पर्यावरण नीति और दीर्घकालिक तैयारियाँ

  • यह घटना स्पष्ट करती है कि वायु-गुणवत्ता या प्रदूषण केवल स्थानीय उत्सर्जन या जलवायु बदलाव का मामला नहीं — बल्कि अंतरराष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक और पर्यावरणीय घटनाओं का असर भी हो सकता है।
  • सरकारों, पर्यावरण एजेंसियों और वैज्ञानिकों को अब सिर्फ वाहन-उत्सर्जन या निर्माण-धूल नहीं, बल्कि ग्लोबल वायुमंडलीय रिएक्शन, अंतर-महाद्वीपीय वायु प्रवाह, और ज्वालामुखीय गतिविधियों की निगरानी करनी होगी।
  • नागरिकों को जागरूक करना होगा कि “स्वच्छ हवा” सिर्फ स्थानीय प्रयासों से नहीं, बल्कि वैश्विक जागरूकता और तैयारी से सुनिश्चित होती है।


स्वास्थ्य-प्रबंधन और सार्वजनिक चेतावनी


  • स्वास्थ्य विभागों, अस्पतालों, स्कूलों, और स्थानीय प्रशासन को तैयार रहना होगा — विशेष रूप से उन समयों में जब वायु-गुणवत्ता पहले से खराब हो।
  • बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं, अस्थमा या हृदय रोगी लोगों के लिए विशेष निर्देश जारी करने होंगे — मास्क, वर्क-from-home, स्कूल बंदी, प्यूरीफायर आदि।
  • मीडिया और सामाजिक जागरूकता अभियान — “ज्वालामुखीय राख” के खतरों, सावधानियों, वायु-गुणवत्ता डेटा की पहुंच — महत्वपूर्ण होंगे।


क्या आने वाले दिन ठीक रहेंगे? — आसमान से जवाब


  • मौसम विभाग और हवामान विशेषज्ञों (जैसे IMD) का कहना है कि राख-बादल भारतीय वायु-क्षेत्र से मंगलवार शाम तक बाहर निकल जाएगा।  
  • हालांकि, यथावत प्रदूषण (वाहन, धूल, कुड़ाना जलाना आदि) है, इसलिए हवा सामान्य से ख़ास नहीं होगी — लेकिन ज्वालामुखीय राख का खतरा टल गया तो राहत मिलेगी।  
  • इसके बावजूद, सतर्क रहने की सलाह दी गई है — खासकर संवेदनशील समूहों को।
  • यह घटना हम सबको याद दिलाती है कि “धरती, हवा और मानवता” कितनी नाज़ुक गठरी है — और हमें अपने पर्यावरण, नीतियों और तैयारी में जागरूक रहना होगा।


निष्कर्ष

Hayli Gubbi के ज्वालामुखी विस्फोट और उसके राख-बादल की दिल्ली तक यात्रा — यह सिर्फ एक खबर नहीं, एक चेतावनी है।


यह दिखाता है कि धरती की गहराइयों में क्या भी हो — वह हवा के माध्यम से हजारों किलोमीटर दूर असर कर सकती है।


फ्लाइट-रद्दीकरण, वायु-मलिनता, स्वास्थ्य-खतरे — इन सबके बीच हम समझ सकते हैं कि आज के वैश्विक युग में “हम सिर्फ जहाँ रहते हैं, वहीं नहीं, बल्कि पूरी पृथ्वी” की जिम्मेदारी है।


हमें अपने नलों, प्रदूषण-नियंत्रण, स्वास्थ्य सुविधाओं, पर्यावरण-नीतियों और जागरूकता को मजबूत करना होगा। तभी हम सिर्फ अपने शहर को, बल्कि पूरी धरती को सुरक्षित रख पाएँगे।