Delhi NCR में November 2025: ज़हर भरी हवा, सांस लेना हुआ मुश्किल — पूरे महीने चली ‘Air Emergency’

2025 के नवंबर में दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण एक बार फिर चरम पर पहुँच गया। कई दिन ऐसा रहा कि हवा “Very Poor” या “Severe/Hazardous” श्रेणी में रही — जिसका असर न सिर्फ वयस्कों पर, बल्कि बच्चों, बुज़ुर्गों और सांस या हृदय की परेशानी वाले लोगों पर भारी पड़ा। इस संकट ने एक बार फिर दिखा दिया कि स्वच्छ हवा आज हमारे लिए कितना अनमोल साधन है। 



प्रदूषण की तीव्रता: AQI लगातार खतरनाक स्तर पर

  • नवंबर के पहले 3 हफ्तों में, राजधानी दिल्ली ने कई बार “Very Poor” से “Severe/Hazardous” तक AQI दर्ज किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर के 21 दिन में से 16 दिन दिल्ली ने “Very Poor” श्रेणी में सांस ली।  
  • 11 नवंबर को दिल्ली-एनसीआर के कई हिस्सों में AQI ने 428 तक पहुंचा, जबकि पड़ोसी शहरों जैसे नोएडा / ग्रेटर नोएडा / हापुड़ में भी AQI 370–400 से ऊपर दर्ज किया गया।  
  • कुछ दिनों में हवा इतनी जहरीली थी कि विशेषज्ञों ने इसे “Air Emergency” कहा — और जनता पर “सांस लेने के लिए भी गार्डेड” रहने की सलाह दी गई थी।  


कारण — हवा इतनी जहरीली क्यों बनी?


विज्ञानों और स्थानीय प्रशासन की रिपोर्टों के अनुसार इस प्रदूषण की तीव्रता के पीछे कई कारण थे:


  • मौसम-कारक: नवंबर में हवा धीमी चल रही थी, तापमान गिरा हुआ था — जिससे कणों (PM2.5, PM10) का फैलाव नहीं हो पा रहा था। हवा स्थिर होने से प्रदूषक निचले स्तर पर जमी हुई हवा में फँस रहे थे।  
  • बीमारी-उत्सर्जन स्रोत: वाहन उत्सर्जन, निर्माण-कार्य, औद्योगिक गतिविधियाँ, धूल तथा आस-पास के क्षेत्रों में कचरा जलाना और अन्य जगहों से निकलने वाले धुएँ ने मिलकर हवा को और जहरीला बना दिया।  
  • भौगोलिक और मौसमीय स्थिति: ठंडी रातें, तापमान में गिरावट, हवा की गहराई में कमी — ऐसे प्राकृतिक कारक भी इस संकट को बढ़ाने में सहायक रहे।  



इन सबके मिश्रण ने दिल्ली एवं NCR को ऐसी वायु-आपदा में फँसा दिया कि कई स्थानों पर लोग सचमुच “सांस लेने के लिए संघर्ष” कर रहे थे।



जनजीवन पर असर — स्कूल बंद, वर्क-फ्रॉम-होम, स्वास्थ्य-सतर्कता

  • स्कूल, कॉलेज, आउटडोर गतिविधियाँ प्रभावित: कई स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई पर स्विच किया — खासकर कक्षा 5 तक के लिए। बच्चों और युवाओं को देर तक बाहर निकलने से बचने की सलाह दी गई थी।  
  • कार्यालयों और ऑफिस-वर्क में बदलाव: वायु-गुणवत्ता के बिगड़ने के चलते कई दफ्तरों ने वर्क-फ्रॉम-होम (WFH) की व्यवस्था की — ताकि लोगों को रोजाना भारी प्रदूषित हवा में आने-जाने से बचाया जा सके।  
  • स्वास्थ्य चेतावनियाँ: डॉक्टरों ने कहा कि यह हवा सामान्य लोगों के लिए भी खतरनाक है — न सिर्फ सांस की तकलीफ वाले लोगों के लिए। दिल, फेफड़े, आंख, गले की समस्याएँ आम हो गई थीं। कई लोगों को साँस लेने में असुविधा, आंखों में जलन, सिरदर्द जैसी शिकायतें हुई।  
  • दिनचर्या प्रभावित: सुबह-शाम धुंध, स्मॉग और जहरीली हवा की वजह से लोग बाहर निकलने से डर रहे थे। धूप हो या सफर — हर काम अब मास्क, हवा फिल्टर या प्यूरीफायर के साथ करने लग गया।


दिल्ली-एनसीआर का यह माह ऐसा रहा, जिसमें “सिर्फ ज़िन्दगी नहीं, सांस लेना भी जोखिम भरा” हो गया।


सरकारी वर्जन: GRAP, आपात-नियम और सतर्कता

  • जब AQI लगातार 400 + के आसपास दर्ज होने लगी, तो सरकार ने Commission for Air Quality Management (CAQM) एवं Central Pollution Control Board (CPCB) की सलाह पर GRAP (Graded Response Action Plan) के स्तरों को लागू किया। इसमें निर्माण कार्यों पर पाबंदी, वर्क-from-home, स्कूलों में बदलाव आदि शामिल थे।  
  • शाम व रात में स्मॉग कम करने के लिए “अँटी-स्मॉग गन” (water-spray cannon) और सड़क-साफ़ सफाई की गई — लेकिन विशेषज्ञों का कहना था कि ये सिर्फ अल्पकालिक उपाय हैं; दीर्घकालीन सुधार के लिए प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण की आवश्यकता है।  
  • कुछ राहत मिली — परंतु जब हवा स्थिर रही और तापमान गिरा, तो प्रदूषण फिर उछल गया। हर बार वही पुरानी समस्या दोहराई गई।  


विशेषज्ञों की चिंता — स्वास्थ्य, पर्यावरण और भविष्य


  • वायु प्रदूषण विशेषज्ञ कहते हैं कि लगातार बुरी हवा के महीनों से फेफड़ों, दिल और आंखों पर लम्बे समय तक असर पड़ेगा। PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों में पहुँचते हैं, खून में मिलते हैं, और हृदय-संबंधी, न्यूरोलॉजिकल और अन्य जटिल बीमारियों का कारण बन सकते हैं।  
  • बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं और सांस / दिल की बीमारी वाले लोगों के लिए यह वायु-कुण्ठा “जन स्वास्थ्य आपात” है। डॉक्टरों ने सलाह दी है कि यदि संभव हो, तो वे हालात सुधरने तक शहर छोड़ दें।  
  • पर्यावरण नीति विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है — पूरे उत्तर भारत की वायु प्रदूषण का यह संकट है। जब पड़ोसी राज्य (जहाँ पराली जलती है या उद्योग-धूल ज्यादा होती है) मिलकर योगदान करते हैं, तो इसे शहर अकेले नहीं संभाल सकता।  
  • दीर्घकालीन उपायों की जरूरत है — बस जल छिड़काव, WFH और निर्माण बंद करना पर्याप्त नहीं। वाहनों के उत्सर्जन, कचरा जलाना, फैक्ट्रियों की हवा-उत्सर्जन, निर्माण-धूल, हरितपट्टी कम होना — इन सब पर ठोस नियंत्रण हो।


दिल्ली की “न्यू नॉर्मल”: क्या हम जहरीली हवा से अभ्यस्त हो रहे हैं?


पिछले कुछ वर्षों में ऐसा अनुभव हुआ है कि दिल्लीवासी धीरे-धीरे इस जहरीली हवा के साथ रहना सीखने लगे हैं — मास्क पहनना, प्यूरीफायर चलाना, एयर क्वालिटी देखना, सालों से हो रहे जलवायु-प्रदूषण के बीच “जी रहे” हैं। पर सवाल यह है: क्या यह “न्यू नॉर्मल” होना चाहिए?


हर साल की तरह, 2025 का यह नवंबर मौसम दिखा रहा है कि अगर योजना, नीति और जनभागीदारी गंभीर न हो, तो समस्या और गहरी हो जाएगी।



क्या जरूरत है — ठोस और दीर्घकालीन समाधान

  1. वाहन उत्सर्जन नियंत्रण: सार्वजनिक परिवहन (बस, मेट्रो), इलेक्ट्रिक वाहनों, साइकिल-मार्ग, हाइब्रिड/इलेक्ट्रिक ऑटो का प्रोत्साहन।
  2. निर्माण & उद्योग-धूल नियंत्रण: निर्माण स्थलों, कामधाराओं, फैक्ट्रियों में धूल-रोकने, जल छिड़काव, पर्यावरण-मापदंड सख्ती से लागू करना।
  3. कचरा प्रबंधन और जलने पर रोक: पराली जलाने, कचरा जलाने, खुले कचरा-अस्सी जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध। कचरा प्रबंधन और रीसायक्लिंग को बढ़ावा।
  4. हरित पट्टी व वृक्षारोपण: शहर और आसपास हरित क्षेत्र, पार्क, पेड़ों का नेटवर्क — हवा को शुद्ध करने में मदद।
  5. जन-जागरूकता व स्वास्थ्य सहायता: लोगों को मास्क / प्यूरीफायर / स्वच्छता के प्रति जागरूक करना, स्वास्थ्य-चेतावनी, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ मजबूत करना।
  6. पॉलिसी + न्यायिक हस्तक्षेप: प्रदूषण-नियंत्रण कानूनों का सख्त पालन, प्रदूषण-नियंत्रक एजेंसियों को सशक्त बनाना, स्थानीय और राज्य सरकारों को जवाबदेह बनाना।


निष्कर्ष

नवंबर 2025 में दिल्ली और NCR ने एक बार फिर अनुभव किया कि हवा — जो कि हमारी सबसे बुनियादी ज़रूरत है — कितनी ज़हर भरी हो सकती है। “Air Emergency” जैसा माहौल, स्कूल बंद, घरों में बंद लोग, मास्क, प्यूरीफायर — यह सब सिर्फ अस्थाई समाधान हैं। असली हल है — हमारी जीवनशैली, हमारी नीतियाँ और हमारी जिम्मेदारी में सुधार।


अगर नहीं सुधरा — तो आने वाले मौसमों में फिर वही कहानी दोहराई जाएगी। क्योंकि प्रदूषण सिर्फ एक मौसम की समस्या नहीं है, यह हमारे शहरीकरण, हमारी आदतों और हमारे पर्यावरणीय दृष्टिकोण की परीक्षा है।