नई दिल्ली — 28 नवम्बर 2025 को, भारत के रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence, MoD) और अमेरिकी सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता हुआ। इस समझौते (LOAs — Letters of Offer & Acceptance) के तहत, भारतीय नौसेना के MH-60R हेलीकॉप्टरों के लिए अगले 5 साल तक sustainment support (रखरखाव, स्पेयर पार्ट्स, मेंटेनेंस, तकनीकी-सहायता आदि) सुनिश्चित करने-वाला पैकेज ₹7,995 करोड़ में तय किया गया।
यह समझौता अमेरिकी Foreign Military Sales (FMS) कार्यक्रम के तहत हुआ है। समझौते के समय भारत की ओर से रक्षा सचिव Rajesh Kumar Singh मौजूद थे।
यह समझौता क्यों महत्वपूर्ण है — MH-60R हेलीकॉप्टर बेड़े का भविष्य सुरक्षित
• MH-60R हेलीकॉप्टर की भूमिका
MH-60R Seahawk, अमेरिकी कंपनी Lockheed Martin / Sikorsky Aircraft Corporation द्वारा निर्मित मल्टी-रोल नौसैनिक हेलीकॉप्टर है, जो समुद्री तट से लेकर जलयान-पटल तक काम कर सकता है। इसमें एंटी-सबमरीन वारफेयर (ASW), एंटी-सर्फेस वारफेयर (ASuW), संवेदी उपकरण, रडार, इन्फ्रारेड कैमरा, डाटा-लिंक, सोनार इत्यादि आधुनिक क्षमताएँ शामिल हैं।
भारत ने 2020 में 24 MH-60R हेलीकॉप्टरों की खरीद का आदेश दिया था। वर्तमान में इनमें से कुछ हेलीकॉप्टर भारत को मिल चुके हैं, और बाकी की डिलीवरी अगले कुछ समय में होनी है।
• sustainment support से क्या सुनिश्चित होगा
इस ₹7,995 करोड़ के समझौते में सिर्फ स्पेयर पार्ट्स नहीं, बल्कि व्यापक सपोर्ट शामिल है — जैसे:
- स्पेयर पार्ट्स और आवश्यक उपकरण (support equipment) की आपूर्ति।
- तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण, तथा मरम्मत-चेक-अप (Periodic Maintenance Inspection) की व्यवस्था।
- भारत में ‘Intermediate-level component repair’ सुविधाओं की स्थापना, जिससे हेलीकॉप्टरों का रखरखाव और मरम्मत देश में ही हो सकेगी।
इस कदम का उद्देश्य है कि भारतीय नौसेना के ये उन्नत हेलीकॉप्टर लंबे समय तक तैयार-तलारूंद बने रहें, उनकी operational readiness रहे, और भारत की रक्षा निर्भरता विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर सीमित न रहे — यानी यह “स्वदेशी रक्षा उत्पादन” (Make in India / आत्मनिर्भर भारत) की दिशा में एक कदम है।
समझौते की पृष्ठभूमि — क्यों अब यह करार हुआ
- MH-60R हेलीकॉप्टरों को समुद्री सुरक्षा, उपग्रह पनडुब्बी खोज, सतत निगरानी, तट-सुरक्षा, जहाजों के सहयोग, और युद्धक अभियानों में इस्तेमाल करना है — इसलिए इनका रखरखाव और तत्परता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- पिछले कुछ सालों में भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी बढ़ी है, और यह समझौता उसी साझेदारी का परिणाम है, जिससे समुद्री रक्षा, Indo-Pacific क्षेत्र में सामरिक संतुलन, और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- साथ ही, भारत सरकार का आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) रणनीति के तहत — हालांकि यह विदेशी उपकरण है — इस तरह का sustainment-deal भविष्य में भारत की मैन्युफैक्चरिंग, MSME उद्योग, तकनीकी कर्मियों को प्रशिक्षण, लोकल मरोमर सुविधाओं को बढ़ावा देगा।
प्रतिक्रिया — नौसेना, रक्षा मंत्रालय और विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं
- रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया कि sustainment support से हेलीकॉप्टरों की availability और maintainability बेहतर होगी। इससे जहाज़ से लेकर तट-आधारित दोनों भूमिकाओं में MH-60R हेलीकॉप्टरों को इस्तेमाल करना संभव होगा।
- एक अधिकारी ने कहा कि इस समझौते से भारत की समुद्री युद्ध-तैयारी मजबूत होगी, और संकट के समय में नौसेना अपनी सभी क्षमताओं का भरोसेमंद इस्तेमाल कर सकेगी।
- कुछ रक्षा विश्लेषकों ने इसे सकारात्मक कदम करार दिया है, क्योंकि पुराने उपकरणों की मरम्मत व सपोर्ट विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता कम करने की दिशा में है।
चुनौतियाँ और आगे की उम्मीदें
हालाँकि यह समझौता निश्चित रूप से एक बड़ा कदम है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
- भारत में मरोमर सुविधाओं (repair facilities) स्थापित करना होगा — इसके लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा, प्रशिक्षित कर्मी, गुणवत्ता नियंत्रण आदि की ज़रूरत होगी।
- स्पेयर पार्ट्स व अन्य उपकरणों की सुचारु आपूर्ति — अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति-शृंखला, समय पर डिलीवरी, लॉजिस्टिक चुनौतियाँ हो सकती हैं।
- लंबी अवधि में, यह देखना होगा कि भारत उपरोक्त sustainment support के बाद कितनी आत्मनिर्भर बन पाता है — यानी spare parts, components आदि स्थानीय कंपनियों द्वारा तैयार किए जाने लगें या नहीं।
उम्मीद है कि रक्षा मंत्रालय, नौसेना और संबंधित कंपनियाँ मिलकर इन चुनौतियों से निपटेंगी।
व्यापक प्रभाव — भारत की समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति
यह समझौता सिर्फ एक रक्षा सौदा नहीं है; इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:
- भारत की समुद्री रक्षा-क्षमता में मजबूती: हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर — सभी दिशा में नौसेना की उपस्थिति व जवाबदेही बढ़ेगी।
- भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग गहरा होगा, जिससे Indo-Pacific क्षेत्र में सामरिक संतुलन प्रभावित हो सकता है।
- मरोमर व मीेन्टेनेंस इंडस्ट्री को बढ़ावा — MSMEs, लोकल कंपनियों को काम मिलेगा, नौसेना व रक्षा से जुड़े उद्योगों में रोज़गार बनेगा।
- आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम — विदेशी डिपेंडेंसी कम होगी, लेकिन आधुनिक तकनीक व रखरखाव में दक्षता बनी रहेगी।
निष्कर्ष
₹7,995 करोड़ के इस नवीन समझौते ने भारत की समुद्री सुरक्षा, रक्षा तैयारियों और नौसेना की operative readiness को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।
MH-60R Seahawk हेलीकॉप्टरों के लिए यह sustainment support पैकेज न सिर्फ हेलीकॉप्टरों की दीर्घकालिक सेवा सुनिश्चित करेगा, बल्कि भारत की रक्षा भूमिका, तकनीकी आत्मनिर्भरता और समुद्री सामर्थ्य को भी नए आयाम देगा।
अगर भारत इस अवसर का पूरा उपयोग करता है — स्थानीय मरम्मत-संरचना, प्रशिक्षण, MSME व उद्योग विकास, समय-निष्ठा और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है — तो यह सौदा भविष्य में रक्षा क्षेत्र के लिए मील का पत्थर बन सकता है।
