हरियाणा की Al-Falah यूनिवर्सिटी और उससे जुड़े डॉक्टरों का नाम अब न सिर्फ शिक्षा के लिए नहीं, बल्कि एक देशव्यापी आतंकवादी साजिश में सामने आ रहा है। Times of India की हाल की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. उमर उन मुख्य आरोपियों में से हैं, जिन्हें दिल्ली के रेड फोर्ट के पास हुए कार बम धमाके (10 नवंबर) से जोड़ा जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ी चर्चा यह है कि कैसे उन्होंने, अपने साथी डॉ. मुज़म्मिल की गिरफ़्तारी के बाद, यूनिवर्सिटी से भागकर दस दिन छिपे रहे — और फिर वही कार, जिसमें वे थे, एक भयावह विस्फोट का केंद्र बन गई।
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| Image Source - The Times Of India |
आल-फलाह यूनिवर्सिटी में आगाज: डॉ. उमर और मुज़म्मिल की शुरुआत
- जांच एजेंसियों के मुताबिक, डॉ. उमर अन नबी और डॉ. मुज़म्मिल गनाइ दोनों ही महामारी के समय (pandemic) के दौरान Al-Falah यूनिवर्सिटी से जुड़े थे।
- चारों ओर उनकी गतिविधियों से जुड़ी डायरी-नोटबुक मिली हैं, जिनमें “operation” जैसे कोडेड शब्द, तारीखें (8–12 नवंबर), और लगभग 25-30 नाम दर्ज हैं — ये नाम ज्यादातर जम्मू-कश्मीर और फ़रीदाबाद से हैं।
- खास मकान नंबरों की पहचान भी हुई है — उमर की लॉजिंग कमरा नं. 4 था और मुज़म्मिल का कमरा नं. 13।
मुज़म्मिल की गिरफ़्तारी और उमर का भड़क उठना
- 30 अक्टूबर 2025 को मुज़म्मिल की गिरफ़्तारी ने पूरे जाल को हिला दिया। उन पर भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री का जिक्र है।
- उसी दिन, उमर अचानक यूनिवर्सिटी छोड़कर निकल गया और वापस नहीं लौटा।
- जांचकर्ताओं के अनुसार, उन्होंने करीब 10 दिन नूक़र-छिपने की रणनीति अपनाई — वे दिल्ली-एनसीआर (NCR) में अन्य रास्तों से घूमते रहे, ताकि पकड़ से बच सकें।
छिपने का ठिकाना: Nuh की हिदायत कॉलोनी में रहस्य
- सूत्रों का कहना है कि उमर ने हरियाणा-एमवात (Nuh) की हिदायत कॉलोनी में लगभग दस दिन छिपकर गुज़ारे।
- यह ठिकाना कथित रूप से एक इलेक्ट्रिशियन (बिजली काम करने वाले व्यक्ति) की मदद से किराये पर लिया गया था, जिसे बाद में जांच में शामिल किया गया है।
- इस बीच, पुलिस और जाँच एजेंसियाँ यह पता लगाने में लगी थीं कि कौन-कौन लोग उमर की मदद कर रहे थे — वित्तीय तार, सुरक्षित रास्ते, लॉजिस्टिक्स — सब पर गहन निगरानी की जा रही थी।
भागने के बाद का फैसला: रेड फोर्ट की ओर
- दस दिन बाद, 10 नवंबर को, उमर उसी सफेद Hyundai i20 में देखा गया, जो बाद में दिल्ली के रेड फोर्ट के पास धमाके में फट पड़ी।
- उसके उस ड्राइव का डेटा जाँचकर्ताओं ने बहुत गहराई से देखा: उन्होंने प्रमुख हाई-वे से बचते हुए अलग रास्ते अपनाए, ट्रैफिक पॉइंट्स बदलते और घबराहट में गाड़ियों को चकमा देते हुए अपनी पोजीशन छिपाई।
- परीक्षणों में पता चला कि विस्फोट “जल्दी हो गया” — यानी, या तो डिटोनेटर ठीक तरह सेट नहीं था, या फिर उमर की घबराहट की वजह से विस्फोट प्रणाली में गड़बड़ी हुई।
मॉड्यूल की रूपरेखा और उसके निशान
- यह नेटवर्क सिर्फ उमर और मुज़म्मिल तक सीमित नहीं था — उनकी डायरी में दर्ज नामों में अन्य प्रतिभागी भी शामिल थे, जो जम्मू-कश्मीर और नज़दीकी इलाकों से संबंधित थे।
- गवाहों और जाँच एजेंसियों का मानना है कि यह मॉड्यूल “व्हाइट-कोट आतंकवाद” की एक बड़ी योजना का हिस्सा था — जहाँ डॉक्टरों का इस्तेमाल भर्ती, लॉजिस्टिक्स, और प्लेटफॉर्म के रूप में किया गया।
- उमर और मुज़म्मिल के बीच तालमेल इतना गहरा था कि उनकी रिकॉर्डिंग्स, डायरी, स्क्रिप्टेड मीटिंग्स और कोडेड मेसेजिंग तक जाँचकर्ताओं को मिल चुकी है।
आल-फलाह यूनिवर्सिटी पर गहरा संकट
- इस पूरी जांच के बाद, Al-Falah यूनिवर्सिटी की भर्ती प्रक्रिया, सुरक्षा व्यवस्थाएँ और स्टाफ व छात्र वेरिफिकेशन पर सवाल उठने लगे हैं।
- कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि यूनिवर्सिटी की वर्किंग नीतियों में खामियाँ थीं — खासकर उस हिस्से में जहाँ डॉक्टरों की पृष्ठभूमि की पड़ताल और उनके व्यवहार की निगरानी की जानी चाहिए थी।
- जाँचकर्ता यह देख रहे हैं कि क्या विश्वविद्यालय परिसर का इस्तेमाल आतंकवादी योजनाओं के लिए “स्टेजिंग ग्राउंड” (योजना तैयार करने और विस्फोटक सामग्री सुरक्षित करने) के रूप में किया गया था।
जाँच की दिशा और अगला कदम
- राष्ट्रीय जाँच एजेंसियाँ (NIA), हरियाणा पुलिस और अन्य सुरक्षा तंत्र मिलकर मॉड्यूल की सम्पूर्ण जाँच कर रहे हैं — न केवल उमर और मुज़म्मिल, बल्कि उनके सहयोगियों और वित्तीय कड़ियों की भी पड़ताल हो रही है।
- फॉरेंसिक विश्लेषण, डायरी का विश्लेषण, कोडेड संदेशों की डिकोडिंग — इन सब के ज़रिए यह समझने की कोशिश की जा रही है कि इस नेटवर्क ने कैसे काम किया और आगे कौन-कौन लोग शामिल थे।
- उसके बाद, यूनिवर्सिटी प्रशासन से सवाल-जवाब किए जाने की संभावना है — कि क्या विश्वविद्यालय को इस साजिश की पूर्व जानकारी थी, और अगर थी, तो उन्होंने क्यों कार्रवाई नहीं की।
- सुरक्षा एजेंसियाँ यह भी देख रही हैं कि क्या इस मामले में विदेशी संपर्क, हवाला नेटवर्क, या अन्य अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क शामिल थे, क्योंकि प्रारंभिक संकेत ऐसे हैं कि राडार सिर्फ घरेलू नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन की ओर भी देख रहा है।
निष्कर्ष
डॉ. उमर यून नबी की भागने की कहानी, मुज़म्मिल की गिरफ़्तारी के बाद इतनी जल्दी और गहरे स्तर पर सक्रिय रूप ले चुकी साजिश को उजागर करती है। यह सिर्फ एक व्यक्ति का डरपोक पल नहीं था — बल्कि एक बड़ा रणनीतिक कदम था। Al-Falah यूनिवर्सिटी की भूमिका, जाँच एजेंसियों द्वारा मिली डायरी और कोडेड योजनाएं, ये सभी बातों की ओर इशारा करते हैं कि यह केवल एक अचानक हमला नहीं, बल्कि लंबे समय से तैयार की गई एक सुनियोजित आतंकी योजना हो सकती थी।
इस पूरे मामले की गहराई में जाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यह दिखाता है कि कैसे पेशेवर छवि के पीछे खतरनाक कट्टरपंथी विचार हो सकते हैं। और यह भी याद दिलाता है कि सुरक्षा नियंत्रण सिर्फ बाहर से नहीं, बल्कि शिक्षा संस्थानों के अंदर भी बेहद जरूरी है।
