नई दिल्ली — राजधानी दिल्ली में बेरोजगारों को सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा-गार्ड की नौकरी दिलाने के नाम पर चलाए जा रहे अवैध जॉब रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। पुलिस ने फर्श बाजार थाना क्षेत्र से आरोपी अमर चौधरी को गिरफ्तार किया है। आरोपी बेरोजगारों से 55,000 रुपये वसूलता था। लेकिन कई महीनों बाद भी उसे न तो नौकरी मिली और न ही वादा पूरा हुआ।
पुलिस के मुताबिक, आरोपी के एक ऑफिस का पता चालू था — जहाँ वह और उसके साथी बेरोजगारों को झांसे में लेते और उनसे वसूली करते थे। शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने तकनीकी निगरानी और दस्तावेजों की पड़ताल कर आरोपी को धर दबोचा। साथ ही उसके साथी की तलाश जारी है।
यह केस सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है — यह उस बड़े नेटवर्क की ओर इशारा है, जो देश में बढ़ती बेरोजगारी और लोगों की नौकरी की उम्मीदों का दुरुपयोग कर रहा है।
कैसे काम करता था रैकेट — झांसे, मोटी रकम और खोई उम्मीदें
पुलिस ने जांच में पाया कि अमर चौधरी — सुरक्षा गार्ड की नौकरी दिलाने के नाम पर — एक फर्जी ऑफिस चलाता था, जो बेरोजगारों को आकर्षक ऑफर देता।
- वह दावा करता था कि सरकारी अस्पतालों — विशेषकर दिल्ली की सरकारी/राजय-सरकारी अस्पतालों — में सुरक्षा गार्ड की कई रिक्तियाँ हैं।
- जरूरत थी कि इच्छुक व्यक्ति विश्वास नगर स्थित उनके ऑफिस में आएँ, फॉर्म भरें, और 55,000 रुपये जम्मा करें — भर्ती शुल्क, दस्तावेज़ीकरण शुल्क या अन्य नामों पर।
- कई पीड़ितों ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि 15–30 दिनों में उनकी नियुक्ति का पत्र (appointment letter) मिलेगा, साथ ही ड्यूटी शुरू हो जाएगी। लेकिन भुगतान के बाद अफ़ेयर में कोई प्रगति नहीं हुई।
- जब उन्होंने नौकरी की पूछताछ की, तो आरोपियों ने धमकी दी — या जवाब देना बंद कर दिया। एक पीड़ित ने केस दर्ज कराया — जिसके बाद पुलिस सख्त हुई।
पुलिस उपायुक्त (पूर्वी दिल्ली) प्रशांत गौतम ने बताया कि तकनीकी निगरानी और शिकायत जांच के बाद आरोपी को गिरफ्तार किया गया। ऑफिस और रिकॉर्ड मिले हैं, जिससे भरोसा हुआ कि यह एक सुनियोजित धोखाधड़ी थी — न कि नौकरी देने की असली कोशिश।
यह केवल एक मॉड्यूल है — दिल्ली में बड़े पैमाने पर भर्ती घोटाले
यह केस अकेला नहीं है। पिछले कुछ सालों में दिल्ली (और आसपास) में नौकरी — विशेषकर अस्पताल या मैनपावर सर्विस के नाम पर — कई बड़े घोटाले उजागर हुए हैं।
- कुछ महीने पहले ही एक फर्जी कॉल-सेंटर रैकेट पकड़ा गया था, जिसमें 14 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। ये लोग जॉब पोर्टल्स पर भर्तियों का विज्ञापन देते, फिर प्रशिक्षण/फीस/प्रोसेसिंग शुल्क मांगते थे।
- एक अन्य मामले में साइबर पुलिस ने जॉब-कन्ट्रैक्ट घोटाले का पर्दाफाश किया — जिसमें फर्जी ऐप व नौकरी-दावा करके युवाओं को लुभाया जा रहा था।
- साल 2024 में, राजधानी के कई अस्पतालों में सुरक्षा-गार्ड भर्ती प्रक्रिया में कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जांच हुई थी। कुछ निजी फर्मों और सरकारी/व्यक्तिगत अधिकारियों पर आरोप थे कि उन्होंने भर्ती नियमों का उल्लंघन कर रखे थे।
ये घटनाएं यह दिखाती हैं कि सिर्फ “कागज़ी भर्ती प्रक्रिया” के नाम पर बड़े नेटवर्क सक्रिय हैं — जो बेरोजगारों की मजबूरी व ख़्वाहिशों का फायदा उठा रहे हैं।
पीड़ितों की स्थिति — उम्मीद से मायूसी तक
बहुत से युवा, जो नौकरी की तलाश में थे, इस तरह के झांसे में फंस गए। उनके लिए 55,000 रुपये बहुत बड़ी रकम हो सकती थी — हो सकता है कि उन्होंने परिवार, कर्ज या बचत से यह राशि जुटाई हो।
- कुछ पीड़ितों को नौकरी का वादा करके महीने-दो महीने तक इंतजार कराया जाता — लेकिन कोई नियुक्ति नहीं होती।
- नौकरी न मिली तो कई बार आरोपी वसूल किये गए पैसे वापस नहीं करते, और पैसे मांगने पर धमकी देते।
- कई लोग लेखा-जोखा व दस्तावेज़ अपनी ओर ले आते — लेकिन नौकरी मिलने के बाद जब वर्क नहीं मिला, तो उनका भरोसा टूट जाता।
इस तरह की धोखाधड़ी सिर्फ आर्थिक नहीं — मानसिक, भावनात्मक स्तर पर भी भारी असर करती है। बेरोजगार सफलता की उम्मीद छोड़ देते, और समाज-परिवार में उनकी स्थिति संदिग्ध हो जाती।
कार्रवाई और जवाबदेही — पुलिस के कदम, लेकिन ज़रूरत है सतर्कता की
पुलिस की तुरंत प्रतिक्रिया — शिकायत मिलने पर कार्रवाई — इस बात को दिखाती है कि अवैध जॉब-स्कैम पर निगरानी तंग की जानी चाहिए। इस केस में:
- शिकायतकर्ता की मदद से तकनीकी निगरानी की गई, रिकॉर्ड जांचा गया, और आरोपी गिरफ्तार किया गया।
- इस तरह के फर्जी रैकेट्स पर नजर रखने के लिए संभावना है कि अन्य पीड़ित आगे आएँ, जिससे बड़े पैमाने पर स्कैम का खुलासा हो सके।
लेकिन, यह पर्याप्त नहीं है। ठगी रोकने के लिए सरकार, पुलिस, सिविल सोसाइटी और नागरिकों — सभी को मिलकर काम करना होगा:
- नौकरी चाहने वालों को चेताया जाए कि यदि कोई “प्री-फीस”, “प्रोसेसिंग चार्ज” या “अडमिशन फि” मांगे — तो सावधान रहें।
- सरकार / अस्पताल प्रशासन — भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और कठोर बनाए; केवल विश्वसनीय एजेंसियों से भर्ती करें।
- साइबर/browser-based जॉब-स्कैम और भर्ती-घोटालों पर जागरूकता बढ़ाएं, ताकि युवा गिरफ़्त के बजाय सतर्क हों।
क्यों मरीजों और अस्पतालों के भरोसे के बीच जुड़ा यह मामला
यह विशेष मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लक्षित जॉब — अस्पताल सुरक्षा गार्ड — अस्पताल व कर्मचारी भर्ती से संबंधित है।
- अस्पतालों में सुरक्षा गार्ड का काम संवेदनशील होता है — बीमारी, ड्यूटी, मरीजों की देखभाल, सफाई आदि की जिम्मेदारी होती है। यदि इन पद पर नियुक्ति घोटाले से हुई हो — तो सुरक्षा, भरोसे व जिम्मेदारी का स्तर प्रभावित हो सकता है।
- कई बार, निजी सुरक्षा-एजेंसियाँ अस्पतालों को गार्ड सप्लाई करती हैं; यदि वो एजेंसियाँ किराये पर गार्ड देती हों — तो भर्ती, पृष्ठभूमि जाँच में लापरवाही घातक हो सकती है।
- इस तरह की धोखाधड़ी से अस्पतालों में कर्मचारियों की विश्वसनीयता, भर्ती प्रक्रिया, सरकारी बजट व नियंत्रण — सभी पर सवाल खड़े होते हैं।
इसलिए, यह स्कैम सिर्फ बेरोजगारों की पीड़ा नहीं — अस्पतालों, मरीजों और स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर सकता था।
यह झांसा क्यों चलता है — समाज, अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी का मिलाजुला परिणाम
यह स्कैम खुद-ब-खुद नहीं हुआ: इसके पीछे कारण हैं — और उन पर गौर करना जरूरी है।
- बेरोजगारी व नौकरी की चाह — दिल्ली जैसे महानगरों में रोज लाखों लोग नौकरी की तलाश में रहते हैं। वे कभी-कभी बिना सोचे समझे भी नौकरी या किसी गारंटीकृत नियुक्ति के लिए तैयार हो जाते हैं।
- विश्वसनीयता का आभास — ऐसा दावा करना कि सरकारी अस्पताल में नौकरी मिलेगी, फर्जी ऑफिस खोल लेना — लोगों को भरोसा दिलाता है। वे सोचते हैं कि यह मौका असली है।
- भ्रष्टाचार व काले बाज़ार का माहौल — जब भर्ती-प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होती, सत्यापन lax होता है — तो ऐसे लोग सक्रिय हो जाते हैं।
- नियामक व निगरानी की कमी — अगर भर्ती कंपनियों, एजेंसियों व कॉलेजों का पंजीकरण, पृष्ठभूमि जांच, औपचारिकता, सत्यापन, जांच पर्याप्त न हो — तो फर्जी भर्ती, ठगी और स्कैम का मार्ग आसान बन जाता है।
इस घटना ने दिखा दिया कि कड़ी कानूनी कार्रवाई, जागरूकता और सामाजिक सतर्कता — सब जरूरी है।
निष्कर्ष: धोखाधड़ी के अड्डों पर शिकंजा — लेकिन जागरूकता ज़रूरी
दिल्ली का यह जॉब-स्कैम मामला सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि उन हजारों बेरोजगारों, उन परिवारों और उन उम्मीदों की कहानी है, जो नौकरी की चाह में थे।
पुलिस की कार्रवाई एक सही कदम है — लेकिन हमें सिर्फ पुलिस और गिरफ्तारी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें
- जागरूक होना चाहिए,
- समझदारी से ऑफर जांचना चाहिए,
- और जब हमें किसी भी प्रकार की स्कैमिंग या धोखाधड़ी दिखे — तो तुरंत शिकायत करनी चाहिए।
नौकरी पाने की चाह — यह सही है, लेकिन नौकरी की उम्मीद पर विश्वास सीधे पैसे देने की नहीं; मेहनत, सही जानकारी, भरोसे और कानूनी प्रक्रिया पर होना चाहिए।
इसी भरोसे और सतर्कता से हम ऐसे घोटालों से बच सकते हैं — और एक स्वस्थ, ईमानदार समाज बना सकते हैं।
