Cyclone Ditwah का कहर — श्रीलंका में गंभीर तबाही, भारत राहत में जुटा

चक्रवात Ditwah शुरू हुआ था 26 नवम्बर 2025 को, और 29 नवम्बर तक इसने श्रीलंका के पूर्वी व पश्चिमी तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों को भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन की तबाही से झकझोर दिया। तत्पश्चात् तूफ़ान बंगाल की खाड़ी में गया, जहां से वह तामीलनाडु, पुडुचेरी और दक्षिणी आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ रहा है। 


कुछ ही दिनों में यह तूफान एक सामान्य डेप्रेशन से बढ़कर एक शक्तिशाली साइकलोन बन गया — जिसकी हवाएँ तेज, बारिश झमाझम और समुद्री लहरें खतरनाक थीं। 


इस तूफान ने पहले श्रीलंका में भयावह रूप लिया — बाद में भारत के तटीय राज्यों में सतर्कता व अलर्ट जारी कर दिए गए। 



श्रीलंका में तबाही — मौत, बाढ़, विस्थापन और आपदा

मृतकों व लाप्ताओं की संख्या


दित्वा के प्रकोप से श्रीलंका में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। официаль आंकड़ों (Disaster Management Centre — DMC) के अनुसार, बाढ़ और भूस्खलन के कारण अब तक 212 की पुष्टि हुई मौतें दर्ज की जा चुकी हैं। साथ ही, लगभग 218 लोग लापता बताए जा रहे हैं। 


पहले रिपोर्टों में संख्या कम थी — जैसे 56 या 123 मौतें — लेकिन खोज-बचाव जारी रहने और प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचने में देरी के कारण मृतकों व लाप्त लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। 



घर, बुनियादी सुविधाएँ व विस्थापन


– तूफान से लगभग 15,000 घर नष्ट हुए या ध्वस्त हुए बताए जा रहे हैं। 

– हजारों परिवारों को अपना घर छोड़कर अस्थायी निर्वासित अवस्थाओं — स्कूल, सरकारी भवन, राहत-शिविरों आदि में शरण लेनी पड़ी है। कई इलाकों में जल-जमाव, कीचड़, सड़क व पुलों का बह जाना, विद्युत और संचार व्यवस्था का टूट जाना — सब लगातार समस्याएँ बनी हुई हैं। 

– प्रभावितों की संख्या लाखों (लगभग 9,68,000 से अधिक लोग) बताई जा रही है, जो तूफान, बाढ़ व भूस्खलन से प्रभावित हुए। 



राहत-कार्य, बचाव और सरकारी उत्तरदायित्व


– श्रीलंका सरकार ने आपातकाल (state of emergency) घोषित किया, और युद्धस्तर पर बचाव-राहत गतिविधियाँ शुरू की गईं — सेना, नौसेना, हवाई दल, आपदा प्रबंधन बल, स्थानीय प्रशासन सभी मोर्चे पर जुटे। 

– राहत शिविर खोले गए, भोजन, पानी, दवाइयाँ, तम्बू, गत्ते, प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई गयी। फंसे हुए लोगों को नाव, हेलिकॉप्टर, सेना-नौसेना के जहाजों से सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। 

– लेकिन प्रभावित इलाकों तक पहुंचना मुश्किल था — कई जगहों पर सड़कों, पुलों, रेलमार्गों, संचार लाइनों का नुकसान हुआ। इलाका बाढ़ या कीचड़ में डूबा हुआ था। इस कारण राहत व बचाव में देरी, जान-माल का और नुकसान हुआ। 



आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव


– लोगों का रोज़गार, रोज़मर्रा की जिंदगी प्रभावित हुई — किसान, मछुआरे, मजदूर, दुकानदार, नौकानिक आदि — जिसने अपनी जीविका, घर, साधन सब गंवा दिए।

– बुनियादी सुविधाएँ जैसे बिजली, पानी, बंदरगाह, परिवहन, संचार — सब क्षतिग्रस्त हुए। इससे आने वाले दिनों में पुनर्निर्माण व पुनर्वास की भारी ज़रूरत है।

– हजारों लोग विस्थापित हुए; उन्हें नए आश्रयों, भोजन, कपड़े, दवाइयाँ, स्कूल-शिक्षा — सब पुनः सुचारु करना चुनौती होगा।

– बच गए लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर, स्वास्थ्य-संकट, संक्रमण, स्वच्छता की समस्या, displaced जीवन — ये सब दीर्घकालीन असर छोड़ सकते हैं।



भारत के क़दम — मदद, समर्थन व Operation Sagar Bandhu

जब दुर्घटना की सूचना आई, तो भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी।


  • Indian Air Force (IAF) व National Disaster Response Force (NDRF) को तुरन्त राहत कार्य हेतु भेजा गया। IAF के C-130J विमान में कई टन राहत सामग्री — तम्बू, कंबल, भोजन, दवाईयाँ आदि लेकर श्रीलंका पहुँचे।  
  • भारत का aircraft carrier INS Vikrant एवं अन्य नौसेना जहाज (जैसे INS Udaygiri) भी पहले से कोलंबो बंदरगाह पर मौजूद थे — उन्हें राहत सामग्री व रसद सहायता भेजने में इस्तेमाल किया गया।  
  • भारत ने अपने “Neighbourhood First” नीति के तहत सहायता देने का संदेश दिया; Narendra Modi — प्रधानमंत्री — ने शोक व्यक्त किया और भारतीय सहायता दलों को तुरंत समर्थन देने का भरोसा दिलाया।  
  • भारतीय उच्चायोग ने कोलंबो हवाई अड्डे पर आपात हेल्प-डेस्क स्थापित किया — ताकि भारतीय नागरिकों, फंसे यात्रियों व उनके परिवारीजनों को मदद मिल सके।  



इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवीय मदद व सहयोग का बड़ा प्रयास सामने आया — लैंगिक सीमा, राष्ट्रीयता, धर्म सब परे — मनुष्यियत दिखी।


भारत में सतर्कता — तटीय राज्यों का हाल

चूंकि Ditwah बंगाल की खाड़ी पार कर भारत की ओर भी बढ़ रहा था — इसलिए तमिलनाडु, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश समेत तटीय राज्यों में रेड/ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया। 


  • राज्य सरकारों, मौसम विभाग व स्थानीय प्रशासन ने मछुआरों, तटीय निवासियों को समुद्र से दूर रहने की चेतावनी दी। नाविकों को नाव बाहर न निकालने, तटीय गतिविधियाँ बंद रखने के निर्देश दिए गए।  
  • बचाव दल, आपदा प्रबंधन टीम, बचाव-केंद्र, अस्थायी आश्रय स्थल — सभी सक्रिय रहे।
  • हवाई अड्डों, फ्लाइट सर्विसेज, तटीय बंदरगाहों, मछली पालने वालों की गतिविधियों पर रोक व सतर्कता बरती गयी।  



इस तैयारी के कारण भारत में — हालांकि डर था — लेकिन प्रथम जानकारी तक बड़े विनाश या मानव-क्षति की सूचना नहीं आई। राहत-तैयारी व पूर्व चेतावनी ने जानें बचाईं।



क्यों बढ़ती जा रही है आपदाएँ — कारण, जलवायु व चुनौतियाँ


चक्रवात Ditwah जैसी घटनाएँ अब कोई “साधारण तूफान” नहीं मानी जा रहीं। इसके पीछे कारण हैं:


  • जलवायु परिवर्तन (climate change) — समुद्री तापमान, मॉनसून की अनियमितता, मौसम में बदलाव — इन सबने चक्रवातों की तीव्रताॆं और आवृत्ति बढ़ाई है।
  • प्राकृतिक व मानव निर्मित संवेदनशीलता — पहाड़ी, डेल्टा, तटीय, नदियों के घाट, कमजोर बांध/जल निकासी — ऐसे इलाकों में बाढ़ व भूस्खलन का खतरा पहले से अधिक है।
  • पूर्व तैयारी व आपदा-प्रबंधन की कमी — पहले चेतावनी, जल निकासी, सुरक्षित आवास, मजबूत रोड/पुल, आपदा-प्रबंधन केंद्र, बचाव दल आदि की कमी होती थी।
  • जनसंख्या घनत्व, गरीबी, अस्थिर अर्थव्यवस्था, सामाजिक असहायता — आपदा-प्रभावितों की मदद व पुनर्वास को कठिन बनाते हैं।



इसलिए — इतिहास, भूगोल, जलवायु व सामाजिक यथार्थ — सब मिलकर इस तरह की आपदाओं को गंभीर बनाते हैं।



अब हमें क्या करना चाहिए — राहत, बहाली और भविष्य की तैयारी

तत्काल राहत व बचाव


  1. प्रभावितों को सुरक्षित आश्रय, भोजन, पानी, दवाई, आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराना।
  2. फंसे लोगों, especially गर्भवती, बच्चे, बुज़ुर्ग — उनकी प्राथमिकता से मदद।
  3. सेना, नौसेना, वायुसेना, NDRF, स्थानीय प्रशासन, NGOs — सबका समन्वित प्रयास।
  4. जल-निकासी, सड़क-पुल पुनर्स्थापना, बिजली-पानी व संचार बहाली — प्राथमिक रूप से।




मध्यम अवधि में पुनर्वास


  • बर्बाद हुए मकान, खेत, बाजार, व्यवसाय — पुनर्निर्माण।
  • विस्थापित परिवारों को स्थायी घर, रोज़गार, साधन, शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधा।
  • आर्थिक मदद, मुआवजा, पुनर्वास पैकेज, सामाजिक सुरक्षा।




दीर्घकालीन रणनीति — तैयारी, पूर्व चेतावनी व सुधार


  • तटीय, डेल्टा, पहाड़ी इलाकों में जल-निकासी, बाँध, मजबूत संरचनाएँ, पर्यावरण-संरक्षण।
  • आपदा-प्रबंधन नेटवर्क, राहत-तैयारी, बचाव दल, हेल्प-लाइन, तेजी से सूचना-प्रणाली।
  • klimaat change mitigation और adaptation — स्मार्ट शहर, हरित विकास, सतत नीति।
  • अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय सहयोग — अनुभव, संसाधन, टेक्नोलॉजी, राहत व पुनर्वास में सहभागिता।


निष्कर्ष — मानवता, तैयारी और संवेदनशीलता की ज़रूरत


Cyclone Ditwah सिर्फ एक मौसम घटना नहीं — यह हमारी कमजोरियों, हमारी तैयारी की कमी, और जलवायु परिवर्तन के खतरों का दर्पण है।


लेकिन साथ ही — यह हमें एक मौका देता है — कि हम साथ आएँ; सहायता करें; जागरूक हों; पर्यावरण, आपदा-प्रबंधन और मानवता के प्रति उत्तरदायी बनें।


श्रीलंका की पीड़ा, हजारों लोग — घर खो चुके, विस्थापित — हमें याद दिलाती है कि हम बाधाओं के सामने कैसे अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं।


भारत, पड़ोसी देश, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय — मिलकर अगर राहत, पुनर्वास और भविष्य की तैयारी करें — तो हम ऐसे तूफानों से बेहतर लड़ सकते हैं।


इस विपदा से न बचा जा सकता हो, लेकिन इससे सीखकर, मजबूत होकर और संवेदनशील होकर — भविष्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है।