Cyclone Ditwah की तबाही: श्रीलंका में भारी जनहानि, भारत ने बढ़ाया ‘‘सागर बंधु’’ के तहत समर्थन

चक्रवात ‘दित्वा’ (Cyclone Ditwah) ने श्रीलंका को 28 नवंबर 2025 को अपने भयानक प्रकोप में घेर लिया और वह देश अब तक इतिहास की सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक से जूझ रहा है। इस चक्रवात ने भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन और जीवन-यापन के सभी साधनों को तहस-नहस कर दिया, जिससे लाखों लोग प्रभावित, हजारों विस्थापित, सैकड़ों मृत और सैकड़ों लापता हो गए। संकट के इस समय में भारत ने ‘‘ऑपरेशन सागर बंधु’’ शुरू कर श्रीलंका को तुरंत मानवीय सहायता भेजी और अपने मजबूती से साथ खड़े होने का संदेश दिया।



1. चक्रवात दित्वा: विनाश का प्रारंभ

चक्रवात दित्वा, भारतीय महासागर में उत्पन्न हुआ एक शक्तिशाली चक्रवात था, जिसने श्रीलंका के पूर्वी तट को जबरदस्त मात्रा में बारिश, तेज हवाएँ और भारी तूफ़ान जैसे हालात दिए। 26 नवंबर 2025 को यह सक्रिय और विकसित होना शुरू हुआ और कुछ ही दिनों में यह तेज-तर्रार चक्रवात बन गया। इसके चलते श्रीलंका के लगभग 25 जिलों में से 22 जिले भारी प्रभावित हुए, जिससे यह देश के इतिहास का सबसे कठिन प्राकृतिक संकट बन गया।


केंद्रीय पहाड़ी इलाकों जैसे कंडी, नुवारा एलिया, बादुल्ला और माताले में भारी बारिश के कारण भूस्खलन ने दर्जनों घरों को ढहा दिया। कई बस्तियाँ मिट्टी के ढेर में दब गयीं और कई रायते, किसान एवं परिवार पूरी तरह से प्रभावित हुए। कंडी और इसके आसपास के इलाकों में अकेले 118 से अधिक मौतें हुईं, जबकि कई लोग अब भी लापता हैं।


2. जान-माल की भारी हानि और सामाजिक-मानवीय प्रभाव

दित्वा के कारण श्रीलंका में बाढ़ और भूस्खलन से व्यापक तबाही मची। कई गाँव, कृषि भूमि, आवास, सड़कें और बुनियादी सेवाएँ क्षतिग्रस्त हुईं। राइस पेडियों, चाय बागानों और अन्य खेती-बाड़ी पर भारी प्रभाव पड़ा।


  • अनुमानित तौर पर 4 लाख से अधिक परिवार (लगभग 14-15 लाख लोग) प्रभावित हुए। 
  • न केवल जीवन, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं पर। कई लोग बेघर हो गए और उन्हें अस्थायी शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। 
  • कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया, घर खो दिया, आजीविका छीन ली गयी — खासकर पहाड़ी इलाकों में जहाँ भूस्खलन से पूरा इलाका तबाह हो गया। 


इस विनाश से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को भी भारी झटका लगा। कृषि, अवसंरचना और बुनियादी सेवाओं के नष्ट होने से देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा। ग्रामीण इलाकों में खाद्य आपूर्ति और जीवन-यापन के साधन दब गये।



3. मृत्यु़ का आंकड़ा और लापता लोगों की संख्या

प्रारंभिक दिनों में मृत्युओं की संख्या कम बताई गयी थी, लेकिन जैसे-जैसे राहत कार्य आगे बढ़े और दूरस्थ इलाकों तक पहुँच हुई, मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ा।


  • प्रारंभिक रिपोर्टों में मौतों की संख्या कुछ सौ बताई गयी थी। 
  • बाद में सरकारी आंकड़ों के अनुसार मृत लोगों की संख्या लगभग 470 से ऊपर पहुंच चुकी है, और कुछ रिपोर्टों में इसे लगभग 474 बताया गया है। 
  • कुछ सरकारी स्रोतों और समाचारों में मृतकों का आँकड़ा 410, 465 या 478+ तक रिकॉर्ड हुआ है, क्योंकि राहत-बचाव दल लगातार प्रभावित क्षेत्र की जाँच कर रहे हैं। 
  • साथ ही, सैकड़ों (300 से अधिक) लोग लापता हैं, खासकर पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में, जहाँ भूस्खलन और सड़क अवरोध ने राहत कार्य को कठिन बनाया। 


4. भारत में ‘‘ऑपरेशन सागर बंधु’’ के तहत मानवीय सहायता


भारत ने इस संकट के समय में तत्काल प्रतिक्रिया दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके से बातचीत कर अपनी संवेदना व्यक्त की और आश्वासन दिया कि भारत हर संभव सहायता प्रदान करेगा। भारत ने ‘‘ऑपरेशन सागर बंधु’’ (Operation Sagar Bandhu) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य खोज-बचाव (Search and Rescue) और मानवीय सहायता प्रदान करना था।



भारत की मुख्य राहत गतिविधियाँ:


  • भारतीय वायु सेना (IAF) ने आगरा से एक C-17 ग्लोबमास्टर विमान द्वारा 73 प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मी और एक मोबाइल फील्ड अस्पताल (para field hospital unit) श्रीलंका भेजा। इस टीम के साथ महत्वपूर्ण चिकित्सा सहायता उपकरण भी भेजे गए। 
  • भारत ने पहले से ही 9.5 टन आपातकालीन खाद्य सामग्री श्रीलंका भेज दी थी, और अतिरिक्त राहत सामग्री 31.5 टन से अधिक एयरलिफ्ट की गई। 
  • भारतीय नौसेना तथा NDRF (National Disaster Response Force) भी स्थानीय बलों के साथ मिलकर राहत कार्यों में सक्रिय रूप से लगे थे। 
  • NDRF ने अकेले 90 से अधिक लोगों को बचाया, जिनमें गर्भवती महिलाएँ, बच्चे और गंभीर रूप से घायल व्यक्ति शामिल थे। 
  • ‘‘ऑपरेशन सागर बंधु‘‘ अभियान में भारतीय सेना और बलों की भागीदारी ने राहत अभियानों को सुचारु और प्रभावी बनाया। 



भारत की इस तत्काल प्रतिक्रिया ने श्रीलंका के लोगों के दिलों को छू लिया, और श्रीलंकाई नागरिकों तथा नेता-समर्थकों ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत को ‘‘भाई‘‘ और ‘‘आशा की किरण‘‘ मानते हुए गहरा आभार व्यक्त किया।



5. राहत कार्य की चुनौतियाँ और भविष्य की रणनीति

अत्यंत कठिन भूस्खलन क्षेत्र

केंद्र-पर्वतीय क्षेत्र जैसे कंडी, नुवारा एलिया व अन्य इलाकों में भारी भूस्खलन ने गाँवों को मिट्टी में दफन कर दिया। गांवों तक पहुंचना बेहद कठिन हो गया था — कई इलाकों में सड़कें टूट चुकी थीं, और कई इलाके बिजली तथा नेटवर्क से कटे हुए थे।



स्वास्थ्य उपकरण और महामारी का खतरा


भारी बाढ़ के बाद संक्रमण रोग, पानी-जनित बीमारी, डयारेहिया, कोलेरा, डेंगू आदि फैलने की आशंका बढ़ी। कई अस्पताल भी खुद प्रभावित हुए, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में बाधा आई। भारत द्वारा भेजा गया मोबाइल फील्ड हॉस्पिटल ऐसे समय में अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया।



बच्चों और कमजोर वर्गों पर प्रभाव


लगभग 2.75 लाख से अधिक बच्चे प्रभावित लोगों में शामिल हैं। इन बच्चों को अब भोजन, साफ पानी, आश्रय-स्थान और शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए पुनर्वास की आवश्यकता है।


6. राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव

चक्रवात दित्वा ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को भारी झटका दिया। कृषि भूमि विशेषतः धान और चाय बागानों को भारी नुकसान पहुंचा। बाढ़-डूबे इलाकों में कई किसान अपनी आजीविका खो चुके हैं। परिवहन, जल विद्युत, सड़क नेटवर्क, और विद्युत आपूर्ति में व्यवधान से रोजमर्रा जीवन प्रभावित हुआ।


कुल मिलाकर 4000 से अधिक घरों का पूरी तरह नष्ट होना, सैकड़ों पुलों और सड़कों का क्षतिग्रस्त होना, और लाखों लोगों का बेघर होना इस त्रासदी की भयावहता को दर्शाता है।



7. अंतरराष्ट्रीय सहायता और साझेदारी

भारत के अलावा अन्य देशों तथा संस्थाओं ने भी सहायता पहुंचाई है।

  • ऑस्ट्रेलिया ने लगभग AUD 1 मिलियन सहायता देने का वादा किया।
  • चीन, जापान, बांग्लादेश जैसे देशों ने भी सहायता के प्रस्ताव रखे।
  • संयुक्त राष्ट्र और UNICEF सहित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने स्वास्थ्य व बच्चों के पोषण से जुड़े कार्यक्रमों का समर्थन किया। 



8. निष्कर्ष: आशा, पुनर्निर्माण और सबक

चक्रवात दित्वा श्रीलंका को अपनी भयंकर मार से कम-से-कम इतना तो सिखाया कि प्राकृतिक आपदाएँ केवल नकारात्मक नहीं होतीं — वे मानवता, एकता और साझेदारी का भी परीक्षक बनती हैं। भारत ने ‘‘ऑपरेशन सागर बंधु‘‘ के तहत अपनी तत्काल प्रतिक्रिया और मानवीय सहायता के साथ दिखाया कि एक मिशन-प्रधान पड़ोसी राष्ट्र संकट के समय भाई-भाई की तरह खड़ा रह सकता है।


आज, पुनर्वास, पुनर्निर्माण, पुनर्स्थापना और पुनर्निर्माण के चरण में श्रीलंका को अभी लंबा मार्ग तय करना है। अस्थायी आश्रयों, राहत शिविरों, चिकित्सा सुविधाओं, रोजगार से जुड़े कार्यक्रमों और पुनर्निर्माण योजनाओं को क्रमबद्ध और दक्षता से लागू करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी।


भारत-श्रीलंका के रिश्ते ने इन कठिन समय में और भी मजबूत बंधन बनाए हैं, जो भविष्य में इस क्षेत्र की स्थिरता, सुरक्षा और साझेदारी के लिए मार्गदर्शक बनेंगे।