CJI‑Designate सूर्य कांत ने लिया बड़ा नारा: “मुकदमे की लंबितता सुलझाना और मध्यस्थता को बढ़ावा देना मेरी पहली प्राथमिकता”

भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI‑Designate) जस्टिस सूर्य कांत ने 22 नवंबर 2025 को एक प्रेस ब्रीफिंग में अपनी प्राथमिक प्राथमिकताओं का ऐलान किया। LiveLaw की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने साफ कहा है कि कोर्ट में बढ़ती केस लंबितता (case pendency) एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जिसे हल करने के लिए वे मध्यस्थता (mediation) पर जोर देंगे। 

उन्होंने यह कहा कि सिर्फ मुकदमे निपटाने के लिए अदालतों का बोझ हल करना ही नहीं चाहिए, बल्कि विवादों को सुलझाने का वैकल्पिक मार्ग — mediation — अब और ज़्यादा प्रासंगिक हो गया है।


लंबित मामलों का संकट: जस्टिस कांत की चिंता

  • जस्टिस सूर्य कांत ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में करीब 90,000 मामले लंबित हैं।  
  • उन्होंने माना कि यह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की समस्या नहीं है — हाई कोर्ट और निचली अदालतों में भी लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है।  
  • उनका लक्ष्य है कि जैसे ही वे CJI बनेंगे (उनकी शपथ 24 नवंबर 2025 को है), वे पुराने और फंसे हुए मामलों (batch matters) पर विशेष ध्यान दें।  
  • इसके अलावा, वे “संवैधानिक बेंच” (Constitution Benches) का गठन बढ़ाने की योजना बना रहे हैं — ताकि वे उन मुद्दों पर निर्णय ले सकें जिन पर पहले से लंबित मामलों का एक समूह जुड़ा हुआ है।  
  • जस्टिस कांत ने कहा है कि उनकी अदालत में “अधिकतम न्यायाधीश शक्ति का उपयोग” किया जाएगा ताकि केस तेजी से निपटें।  


मध्यस्थता (Mediation): न्याय व्यवस्था का “गेम‑चेंजर”

  • जस्टिस कांत ने mediation को “बहस हल करने का सबसे आसान और प्रभावी तरीका” बताया है।  
  • उनका मानना है कि मध्यस्थता न केवल केस लंबितता को कम कर सकती है, बल्कि अदालतों के बोझ को भी हल कर सकती है।  
  • उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि “मध्यस्थता केंद्रों (mediation centres)” का विस्तार होना चाहिए, ताकि यह देश भर में एक विश्वसनीय विकल्प बने।  
  • उन्होंने विशेष रूप से सरकारी एजेंसियों और विभागों से कहा है कि वे अपनी विवादों को मध्यस्थता (rather than litigation) के माध्यम से हल करने में आगे आएँ।  
  • उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कई निजी कंपनियाँ, बैंक और एमएनसी पहले से ही इन-हाउस मध्यस्थ (in-house mediators) बनाने की ओर बढ़ रही हैं।  
  • जस्टिस कांत ने पिछले कुछ वक्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्यस्थता के महत्व पर दिए गए भाषण का भी हवाला दिया और कहा कि यह “एक अनुकूल वातावरण” बन रहा है।  


उनकी पृष्ठभूमि और न्यायिक यात्रा


  • जस्टिस सूर्य कांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गाँव में हुआ था।  
  • उन्होंने महारिषि दयानंद विश्वविद्यालय (Rohtak) से लॉ की डिग्री प्राप्त की, और फिर साल 1984 में Hisar के जिला अदालतों में वकालत शुरू की।  
  • बाद में, उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में संवैधानु, सेवा और नागरिक मामलों में अभ्यास किया।  
  • 2004 में उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया गया।  
  • उन्होंने NALSA (National Legal Services Authority) के गवर्निंग बॉडी में भी काम किया, जो मध्यस्थता और कानूनी सेवा पहुंच को बढ़ाने में सक्रिय है।  
  • 2018 में वे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने, और फिर मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट में शामिल हुए।  
  • 14 मई 2025 से, वे NALSA के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं।  


न्याय सुधार की उनकी सोच: आत्मनिरीक्षण और नवाचार

  • जस्टिस कांत यह मानते हैं कि सिर्फ “अदालतें काम न कर रही हैं” कहना समस्या का समाधान नहीं है। उन्हें लगता है कि केस लंबितता कई कारणों से बढ़ी है — जैसे “listing प्रक्रिया में खामियाँ” और “संक्षिप्त संसाधन”।  
  • उनका लक्ष्य है “मजबूत बेंच संरचना” तैयार करना — ताकि ज़रूरत के मुताबिक संविधान बेंच और अन्य बड़ी बेंच बनाई जा सकें और तुरंत मुद्दों का निपटारा हो सके।  
  • वे चाहते हैं कि निचले स्तर की अदालतें (हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट) भी उस तरह से काम करें कि वहां मामलों का निपटारा तेज़ी से हो, और सुप्रीम कोर्ट का दबाव कम हो।  
  • इसके अलावा, उन्होंने एआई (Artificial Intelligence) जैसे तकनीकी टूल्स की भूमिका पर भी कहा है कि अदालतों में AI का उपयोग “संयम और परिपक्वता” के साथ करना चाहिए।  
  • सामाजिक मीडिया (social media) पर न्यायाधीशों और न्यायिक निर्णयों की आलोचना पर उन्होंने कहा है कि “उचित आलोचना स्वीकार्य है,” लेकिन “अनसामाजिक मीडिया” (जो उन्हें trolling के रूप में दिखती है) को नियंत्रित करने के लिए हमें संतुलन बनाना चाहिए।  

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

  • लंबितता का पैमाना बहुत बड़ा है: जस्टिस कांत ने माना कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में ही 90,000 से अधिक मामले लंबित हैं, और देशभर की अदालतों में यह संख्या करोड़ों तक जाती है।  
  • मध्यस्थता को बढ़ावा देना आसान तो है, लेकिन कठिन भी: बहुत से लोग अदालतों में फैसले का भरोसा करना पसंद करते हैं, और mediation की प्रतिस्पर्धा में यह विश्वास बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • संवैधानु बेंच गठन: बड़े संविधान बेंच बनाना न्यायालय के संसाधनों और समय दोनों की मांग करता है, और उनकी नियमितता सुनिश्चित करना एक बड़ी प्रशासनिक जिम्मेदारी होगी।
  • तकनीकी और सांस्कृतिक बदलाव: AI, mediation और अन्य आधुनिक सुधारों को स्वीकार करने के लिए न्यायिक प्रणाली में बदलाव की संस्कृति और समय दोनों चाहिए होंगे।
  • नियोजन और निगरानी: सिर्फ घोषणाएं करना ही पर्याप्त नहीं; यह महत्वपूर्ण है कि जस्टिस कांत की प्राथमिकताओं को जमीन पर लागू किया जाए — और उनकी प्रभावशीलता की नियमित समीक्षा हो।


भविष्य की आशाएँ और संभावनाएँ

  • अगर जस्टिस कांत सफल होते हैं, तो यह भारतीय न्यायपालिका के लिए मॉडल सुधार हो सकता है — जहाँ लंबितता का समाधान और विवाद समाधान का वैकल्पिक रास्ता (mediation) दोनों साथ-साथ आगे बढ़ें।
  • उनकी योजना के सफल क्रियान्वयन से निचली अदालतों का बोझ कम हो सकता है, जिससे न्याय अधिक पहुंच योग्य और त्वरित हो सकता है।
  • मध्यस्थता के विस्तार के साथ, गणराज्य में कानूनी व्यय और समय की बचत हो सकती है, जिससे सामान्य नागरिकों के लिए न्याय अधिक किफ़ायती और सरल हो सकता है।
  • उन्हें उम्मीद है कि उनकी अवधि में (वे 24 नवंबर 2025 से फरवरी 9, 2027 तक CJI रहेंगे) उनकी पहलों का शुरुआती असर दिखेगा — लंबित मामलों की संख्या में कमी और मध्यस्थता की जागरूकता में वृद्धि।
  • यदि यह दृष्टि कामयाब होती है, तो भविष्य में भारतीय न्याय प्रणाली को और अधिक लचीला, कुशल और विवाद-निपटान‑मित्र बनाया जा सकता है।


निष्कर्ष

CJI‑Designate जस्टिस सूर्य कांत का यह बयान कि मुकदमे की लंबितता और मध्यस्थता (mediation) उनकी शीर्ष प्राथमिकताएँ होंगी, न्याय क्षेत्र में एक ताज़ा दिशा‑निर्देश है। यह सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक रोडमैप है — जिस पर अगर कार्रवाई की जाए, तो भारत की न्यायिक व्यवस्था को न सिर्फ बोझ से राहत मिलेगी, बल्कि विवादों को समझौते के रास्ते से हल करने की संस्कृति भी मजबूत होगी।


उनकी योजना न्याय को तेज़, न्यायसंगत और आधुनिक बनाने की है। अगर वे इस राह में सफल होते हैं, तो उनकी CJI के रूप में विरासत सिर्फ “फैसला देने वाले” के रूप में नहीं, बल्कि “समाधान के निर्माता” के रूप में रहेगी। यह कहना गलत न होगा कि उनके इन कदमों से न्यायप्रणाली में सुधार की उम्मीदों को एक नई हवा मिली है।