Justice Surya Kant बने भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश — नई शुरुआत और उम्मीदों का क्षण

24 नवंबर 2025 को सुबह दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में एक गौरवपूर्ण दृश्य हुआ जब जस्टिस सूर्य कांत ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष शपथ ली और भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में पद संभाला। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है भारत की न्याय व्यवस्था के लिए — क्योंकि इस पद पर आने वाले व्यक्ति की भूमिका सिर्फ उच्चतम न्यायालय चलाने तक सीमित नहीं बल्कि लोकतंत्र की रक्षा और न्याय की पहुँच को मजबूत करने तक फैली हुई है।



उनकी पृष्ठभूमि — एक साधारण शुरुआत से शीर्ष तक

जस्टिस सूर्य कांत का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के छोटे-से गाँव पेटवार में हुआ था। एक मध्यम परिवार से आए उन्होंने कठिन परिश्रम से अपने न्यायिक सफर की शुरुआत की। उन्होंने महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से विधि-स्नातक की डिग्री ली और बाद में वकालत का रास्ता अपनाया।


1984 में उन्होंने हिसार की जिला अदालत से वकालत शुरू की। फिर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में उन्होंने नागरिक, सेवा और संवैधानु मामलों में दखल दिया। 2000 में उन्हें हरियाणा राज्य का एडवोकेट-जनरल नियुक्त किया गया, उसके बाद जुलाई 2001 में वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा मिला।


2004 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने। फिर अक्टूबर 2018 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा दी। मई 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया। इस तरह उन्होंने न्यायिक पायदान-पायदान चढ़ते हुए इस मुकाम तक पहुँचने की प्रेरणा दी।



शपथ ग्रहण समारोह और कार्यकाल की रूपरेखा


शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति, लोकसभा स्पीकर, गृह एवं रक्षा मंत्री सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। जस्टिस सूर्य कांत ने लगभग 15 महीने के कार्यकाल के लिए शपथ ली है, जिसका समापन 9 फरवरी 2027 को होगा। यह अवधि न्यायिक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।


उन्होंने समारोह के बाद कहा है कि उनकी शीर्ष प्राथमिकताएँ होंगी — लंबित मामलों को कम करना और मध्यस्थता (mediation) को बढ़ावा देना। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ फैसला-लंबितता का बोझ नहीं, बल्कि न्याय तक पहुँच का विस्तार भी उनके नजरिए में है।



प्रमुख न्यायिक हस्तक्षेप और योगदान


जस्टिस सूर्य कांत उन न्यायाधीशों में से हैं जिनका नाम अनेक संवैधानु और नागरिक-स्वतंत्रता-सम्बंधी मामलों में सामने आया है:


  • उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रश्न से जुड़े मामलों में भाग लिया।
  • सशस्त्र बलों के लिए वन-रैंक-वन-पेंशन (OROP) से जुड़े फैसलों में उनकी भूमिका रही।
  • चुनावी प्रक्रियाओं, मतदाता सूची और स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी जैसे मुद्दों पर उन्होंने न्याय का नया आयाम दिया।
  • उन्होंने मध्यस्थता के महत्त्व पर बल दिया और कहा है कि यह “गेम-चेंजर” साबित हो सकती है।



इन सभी से यह स्पष्ट होता है कि उनके न्याय-दृष्टिकोण का केंद्र सिर्फ कानून-निर्णय नहीं बल्कि न्याय-व्यवस्था की समृद्धि भी है।



चुनौतियाँ और उम्मीदें

मुख्य चुनौतियाँ


  • मामलों की लंबितता: देश की अदालतों में बहुत बड़े पैमाने पर मुकदमे लंबित हैं, जो न्याय की गति को धीमा कर रहे हैं।
  • संसाधनों की कमी: न्यायालयों में न्यायाधीशों, स्टाफ और तकनीकी संसाधनों की कमी है — जिससे मामलों का निपटारा प्रभावित होता है।
  • बदलाव स्वीकार्य नहीं होना: मध्यस्थता, इलेक्ट्रानिक अदालतें, AI-उपकरण आदि नए तरीकों को अपनाना न्याय-प्रणाली के लिए आसान नहीं रहा है।



प्रमुख उम्मीदें


  • न्याय तक पहुँच आसान बनेगी और आम नागरिकों को बेहतर सेवा मिलेगी।
  • लंबित मामलों की संख्या में कमी आएगी और संवैधानु एवं सामाजिक-मुद्दों पर तेजी से निर्णय होंगे।
  • न्यायिक सुधारों के माध्यम से न्यायालयों का भरोसा बढ़ेगा और देश की न्याय व्यवस्था विश्वस्तरीय बनेगी।


निष्कर्ष


जस्टिस सूर्य कांत का भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ-ग्रहण एक नए युग की शुरुआत को दर्शाता है। उनके न्यायिक सफर ने दिखाया है कि निस्संदेह शुरुआत साधारण हो सकती है, पर समर्पण-मेहनत से शीर्ष तक पहुँचा जा सकता है। उनका कार्यकाल उम्मीदों से भरा है — लंबितता कम करने की, न्याय की गति बढ़ाने की और मध्यस्थता जैसे आधुनिक विकल्पों को स्थापित करने की दिशा में।


उनकी भूमिका सिर्फ अदालतों तक सीमित नहीं रहेगी; व्यावहारिक न्याय-सुधार और लोगों की न्याय-भरी बातें सुनने-समझने का अवसर बनेगी। आने वाले महीने यह तय करेंगे कि उनके इन कदमों का असर कितना व्यापक और स्थायी रहा — लेकिन एक बात तय है: न्याय की दिशा में यह एक नया अध्याय है।